वर्ग संघर्ष का सिद्धांत
वर्ग संघर्ष का सिद्धांत- (मार्क्स &एंजिल्स )
यह
सिद्धांत मार्क्स और एंजिल्स ने अपनी The Communist Menifesto नामक पुस्तक
में 1848 में दिया। इस सिद्धांत को इन्होने पूंजीवादी समाज के विनाश के
सन्दर्भ में दिया है तथा
वर्ग संघर्ष
को इन्होने पूंजीवादी समाज में परिवर्तन का मुख्य कारण माना है।
मार्क्स के अनुसार इतिहास के लगभग सभी समाजों
में वर्ग संघर्ष विद्यमान है। इन्होने वर्ग संघर्ष का एक मात्र आधार आर्थिक
व्यवस्था को बताया है। इन्होने आर्थिक व्यवस्था के आधार पर समाज को
दो वर्गों में बांटा है- शासक वर्ग एवं शासित
वर्ग। दोनों वर्गों के परस्पर विरोधी हित होते हैं जिससे उनमे टकराहट
उत्पन्न होती है इसलिए दोनों विरोधी वर्ग के अंतर्गत आते हैं तथा दोनों में
स्वार्थों की पूर्ति को लेकर सदैव वर्ग संघर्ष विद्यमान होता है।
मार्क्स एवं एंजिल्स के अनुसार -"इतिहास में पांच प्रकार के समाज हैं जिसमे से तीन बीत चुके हैं,चौथा
चल रहा है और पाँचवा आने वाला है अर्थात यूरोप में
साम्यवाद
के बादल छाये हुए हैं और कभी भी बरस सकते हैं।"
समाज - पांच प्रकार के
१-आदिम समाज -
यहाँ कोई आर्थिक व्यवस्था नहीं थी न तो
कोई वर्ग था इसलिए कोई वर्ग संघर्ष भी नहीं पाया जाता था। सभी के
कार्य योग्यता के अनुसार बंटे होते थे। इस समाज को
'आदिम साम्यवादी समाज' भी कहते हैं।
२-प्राचीन समाज -
यहाँ पत्थर के औजार उत्पादन के साधन थे इसलिए
आर्थिक व्यवस्था भी पाई जाती थी। उत्पादन के साधन के आधार पर यहाँ दो वर्ग
पाए जाते थे पहला औजार के स्वामी जिन्हे मालिक कहा गया ये शोषक वर्ग
में आते हैं दूसरा वर्ग उनका जो इन औजारों पर काम करते थे उन्हें दास
या शोषित वर्ग कहा जाता था। दोनों वर्गों में स्वार्थ पाया जाता था जिसकी
टकराहट के कारण ही वर्ग संघर्ष जन्म लेता था।
३-सामंतवादी समाज -
यहाँ भूमि उत्पादन के साधन एवं आर्थिक व्यवस्था
के रूप में कार्य करती थी। यहाँ पर दो वर्ग पाए जाते थे पहला जमींदार
जो शासक वर्ग के अंतर्गत आता था दूसरा किसान जो की शोषित वर्ग में आता
था। दोनों वर्गों में स्वार्थों की टकराहट के कारण वर्ग
संघर्ष होता था।
४-पूंजीवादी समाज -
यहाँ बड़ी बड़ी मशीने एवं उद्योग उत्पादन के साधन एवं
आर्थिक व्यवस्था के रूप में कार्य करते हैं। यहाँ पर दो वर्ग पाया जाता है
पहला पूंजीपति वर्ग जो शासक वर्ग है दूसरा सर्वहारा वर्ग जो शोषित
वर्ग है। दोनों वर्गों के स्वार्थों की टकराहट के कारण वर्ग संघर्ष
पाया जाता है।
५-साम्यवादी समाज -
पूंजीवादी समाज में वर्ग संघर्ष चरम सीमा पर पहुँच जाता है
जिससे क्रांति हो जाती है और पूंजीवादी समाज नष्ट हो जाता है तथा
साम्यवादी समाज की स्थापना हो जाती है।
क्रांति कैसे होती है इसकी व्याख्या मार्क्स
निम्न प्रकार से करते हैं
(यूरोप के पूंजीवादी समाज के अध्ययन के आधार पर )-
मार्क्स के अनुसार पूंजीपतियों
का एकमात्र उद्देश्य अधिक से अधिक लाभ कमाना होता है जिसके लिए वह दो
तरीकों का प्रयोग करता है-
१-श्रमिकों की संख्या में कटौती कर देता है तथा अपनी फैक्ट्री में
बड़ी बड़ी मशीनों एवं नई तकनीकी यंत्रों का प्रयोग करने लगता है।
२-
संसाधनों में कार्य करने वाले श्रमिकों के काम के घंटों में बृद्धि कर देता है
जबकि उनकी भुगतान राशि में वृद्धि नहीं करता है,इससे कम लागत
में अधिक वस्तुओं का उत्पादन होने लगता है परन्तु श्रमिकों का श्रम सस्ता
होने के कारण उनकी महत्वपूर्ण आवश्यकताओं जैसे - रोटी,कपड़ा, मकान आदि
की पूर्ति नहीं हो पाती है इसलिए उनका असंतोष चरम सीमा पर पहुँच
जाता है। अधिक लाभ के लिए पूंजीपति
आर्थिक मंदी का चक्र चला देता है जिससे छोटे पूंजीपतियों को आर्थिक हानि
होती है और उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो जाती है और वे श्रमिकों की
श्रेणी में आ जाते हैं।इस प्रकार पूंजीवादी समाज में पूंजीपतियों
का ध्रुवीकरण और श्रमिकों का ध्रुवीकरण साथ-साथ चलता रहता है।
मार्क्स के अनुसार प्रत्येक समाज का विनाश उसी में निहित होता है इसलिए
पूंजीवादी समाज
का विनाश भी उसी में निहित है और वह विनाश का तत्व है यातायात एवं
संचार के साधन जिसके द्वारा एक जगह का श्रमिक आसानी से दूसरी जगह के
श्रमिक तक पहुंच सकता है। इस प्रकार पूरी दुनिया के श्रमिक एक जगह
इकट्ठे हो जाते हैं और सभी की दशा समान होती है तथा सभी अपनी दयनीय स्थिति
का जिम्मेदार पूंजीपतियों को ठहराते हैं इससे श्रमिकों के मध्य
वर्ग चेतना
आ जाती है और सभी अपने को एक समूह का मानने लगते हैं किन्तु इन्ही के मध्य
कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो कभी मध्य पूंजीपति थे और सदैव बड़े पूंजीपतियों
से ईर्ष्या करते थे वे इन श्रमिकों को भड़काने का काम करते हैं जिससे सभी
श्रमिक मिलकर क्रांति कर देते हैं और पूंजीपतियों को उखाड़कर फेंक देते हैं
तथा संसाधनों का मालिक स्वयं बन जाते हैं। इस युग को मार्क्स ने "सर्वहारा के प्रभुत्त्व का
युग" या "सर्वहारा के अधिनायकत्व का युग"कहा है। यह समाजवाद का पहला चरण है,चूँकि सर्वहारा वर्ग शोषण के दर्द
को जानता है इसलिए वह पूंजीपतियों का शोषण नहीं करेगा बल्कि एक ऐसी
विचारधारा लाएगा जिससे संसाधनों पर पूरे समूह का अधिकार होगा,सभी लोग अपनी
योग्यता के अनुसार कार्य करेंगे तथा लाभ को आवश्यकतानुसार आपस में
बाँट लेंगे इसे साम्यवादी विचारधारा कहा जाता है,यह समाजवाद का दूसरा या अंतिम चरण है।
इनके अनुसार समाजवाद
और साम्यवाद की स्थापना सर्वहारा वर्ग ही कर सकता है क्योंकि धरती पर
सबसे दलित और शोषित वर्ग सर्वहारा वर्ग ही है।
निष्कर्षतः
वर्ग संघर्ष
की अंतिम परिणति साम्यवादी समाज की स्थापना करना था।
मार्क्स को 'सर्वहारा वर्ग का देवता' भी कहा जाता है।
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