पारसन्स का सामाजिक व्यवस्था का सिद्धांत
सामाजिक व्यवस्था का सिद्धांत
या
संरचनात्मक प्रकार्यवादी सिद्धान्त
टालकॉट पार्सन्स के अनुसार समाजशास्त्र सामाजिक व्यवस्था का अध्ययन
करता है इस सामाजिक व्यवस्था का निर्माण क्रिया प्रतिक्रिया या अंतः
क्रिया के माध्यम से होती है पार्सन्स कहते हैं कि "अंतः क्रिया का संस्थात्मक रूप ही व्यवस्था
है।"
अंतः क्रिया-
जब कोई भी दो व्यक्ति आपस में एक दूसरे से क्रिया - प्रतिक्रिया
करते हैं और दोनों एक दूसरे को प्रभावित करते हैं तो उसे ही अंतः
क्रिया कहा जाता है।
"पारसंस सामाजिक व्यवस्था की सबसे मूलभूत इकाई क्रिया को मानते
हैं।"
पार्सन्स
के अनुसार दो व्यक्ति क्रिया प्रतिक्रिया या अंतः क्रिया के माध्यम से
एक दूसरे को प्रभावित करते हैं
अतः अंतःक्रिया जब समाज के मानक मूल्यो के अनुसार बहुत दिनो तक चलती
रहेगी तो वह एक संस्था के रूप मे स्थापित हो जायेगी और संस्थात्मक रूप
धारण करते ही इसमें चार विशेषताओं का समावेश हो जाता है तो
वो व्यवस्था बन जाती है।
वो चार विशेषताएं निम्नलिखित हैं -
1-सीमा निर्धारण (Boundary Maintenance)
2-भूमिकाओ का बंटवारा (Differentiation)
3-संगठन (Organisation)
4-संतुलन कि ओर झुकाव (Tendency equilibrium)
ये चार विशेषताएं जब संस्था से जुड़ जाती हैं तो वह स्वतः ही
व्यवस्था में तब्दील हो जाती है।
व्यवस्था के प्रकार -
व्यवस्था तीन प्रकार
की होती है -
१-शारीरिक या जैविकीय व्यवस्था (Physical/Biological
System)
२-सांस्कृतिक व्यवस्था (Cultural System)
३-व्यक्तित्त्व व्यवस्था (Personality System)
उदाहरणस्वरूप शारीरिक या जैविकीय व्यवस्था में चारों विशेषताएं पायी जाती
हैं। हमारे शरीर की सीमा निर्धारित होती है ,प्रत्येक अंगों की भूमिका
अलग-अलग होती है, भूमिकाओं में बंटवारा होते हुए भी अंगों में संगठन पाया
जाता है और शरीर में संतुलन बनाये रखने के लिए शरीर के अंदर कुछ प्रतिरोधक
पाए जाते हैं।
पार्सन्स कहते हैं कि इन्ही तीनों व्यवस्थाओं को मिला दे तो सामाजिक
व्यवस्था का निर्माण होता है और समाजशास्त्र इसी सामाजिक व्यवस्था का
अध्ययन करता है।
पारसन्स के अनुसार प्रत्येक व्यवस्था की एक निश्चित संरचना होती है और उस संरचना का निर्माण विभिन्न इकाइयों से होता है अर्थात संरचना का अस्तित्त्व इकाइयों पर टिका होता है। जब ये सभी इकाइयां एक दूसरे के साथ सहयोगात्मक सम्बन्ध रखेंगी और अपने-अपने प्रकार्य की पूर्ति करेंगी तो संरचना का अस्तित्त्व बना रहेगा। अर्थात "संरचना का अस्तित्त्व इकाइयों द्वारा किये गए प्रकार्य पर निर्भर है।" जब संरचना का अस्तित्त्व बना रहेगा तो संरचना भी अपने प्रकार्य की पूर्ति करेगी और व्यवस्था सदैव संतुलित और संगठित बनी रहेगी।
अर्थात "व्यवस्था का अस्तित्त्व संरचना द्वारा किये गए प्रकार्य पर निर्भर है" क्योंकि व्यवस्था में संरचना और प्रकार्य दोनों सम्मिलित हैं इसलिए पारसन्स के इस सिद्धांत को संरचनात्मक प्रकार्यवादी सिद्धांत भी कहते हैं।
पारसन्स के अनुसार प्रत्येक व्यवस्था की एक निश्चित संरचना होती है और उस संरचना का निर्माण विभिन्न इकाइयों से होता है अर्थात संरचना का अस्तित्त्व इकाइयों पर टिका होता है। जब ये सभी इकाइयां एक दूसरे के साथ सहयोगात्मक सम्बन्ध रखेंगी और अपने-अपने प्रकार्य की पूर्ति करेंगी तो संरचना का अस्तित्त्व बना रहेगा। अर्थात "संरचना का अस्तित्त्व इकाइयों द्वारा किये गए प्रकार्य पर निर्भर है।" जब संरचना का अस्तित्त्व बना रहेगा तो संरचना भी अपने प्रकार्य की पूर्ति करेगी और व्यवस्था सदैव संतुलित और संगठित बनी रहेगी।
अर्थात "व्यवस्था का अस्तित्त्व संरचना द्वारा किये गए प्रकार्य पर निर्भर है" क्योंकि व्यवस्था में संरचना और प्रकार्य दोनों सम्मिलित हैं इसलिए पारसन्स के इस सिद्धांत को संरचनात्मक प्रकार्यवादी सिद्धांत भी कहते हैं।
व्यवस्था =संरचना +प्रकार्य
ठीक इसी प्रकार प्रत्येक सामाजिक व्यवस्था की एक निश्चित संरचना होती है
जिसे सामाजिक संरचना कहा जाता है। इसका निर्माण विभिन्न इकाइयों से होता
है जैसे आर्थिक इकाई ,राजनीतिक इकाई ,पारिवारिक इकाई, सांस्कृतिक इकाई
आदि। जब ये सभी इकाइयां अपने-अपने प्रकार्य की पूर्ति करती हैं तो संरचना
बनी रहती है और जब संरचना अपने प्रकार्य की पूर्ति करती हैं तो
व्यवस्था बनी रहती है और समाज में संगठन और संतुलन बना रहता है अर्थात -
सामाजिक व्यवस्था का अस्तित्त्व भी सामाजिक संरचना द्वारा किये गए
प्रकार्य पर निर्भर करता है।
संरचना की प्रकार्यात्मक पूर्वअपेक्षाएँ-
या
पारसंस का AGIL Model -
संरचना अपने प्रकार्य की पूर्ति करे इससे पहले उसकी कुछ प्रकार्यात्मक
पूर्वअपेक्षाएँ होती हैं जिसे संरचनात्मक या प्रकार्यात्मक
पूर्वअपेक्षाएँ या पूर्वआवश्यकताएँ कहते हैं। ये आवश्यकताएं चार
होती हैं जो की निम्नलिखित हैं -
1 -अनुकूलन (Adaptation)
2 -लक्ष्य की पूर्ति (Goal Attainment)
3 -एकीकरण (Integration)
4 -तनाव प्रबंधन (Tension Management or Latency)
अनुकूलन -
संरचना अपने प्रकार्य की पूर्ति करे उससे पहले उसकी
प्रथम प्रकार्यात्मक पूर्व आवश्यकता अनुकूलन है अर्थात जब
विभिन्न इकाइयों में अनुकूलन बना रहेगा तो संरचना का भी अस्तित्त्व बना
रहेगा और फिर संरचना अपने प्रकार्य की पूर्ति करके व्यवस्था में संगठन और
संतुलन बनाये रखती है और इस
अनुकूलन रुपी प्रकार्यात्मक पूर्व आवश्यकता की पूर्ति आर्थिक
उपसंरचना या आर्थिक इकाइयां करती हैं। क्योंकि ये आर्थिक संस्थाएं समाज में खाद्य सामग्री का उचित
उत्पादन,उपभोग एवं वितरण की व्यवस्था करती हैं जिससे इकाइयों की न्यूनतम
आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहती है और इकाइयों के मध्य अनुकूलन बना रहता
है।
लक्ष्य की पूर्ति -
अपने प्रकार्य की पूर्ति करने के लिए संरचना की दूसरी प्रकार्यात्मक
पूर्वआवश्यकता इकाइयों के लक्ष्य की पूर्ति है और
इस लक्ष्य की पूर्ति राजनीतिक उपसंरचना या राजनीतिक संस्थाएं करती
हैं।
वो विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से इकाइयों के लक्ष्य की
पूर्ति की समुचित व्यवस्था करती हैं जिससे इकाइयों में सहयोग और संगठन
बना रहता है और
संरचना
का अस्तित्त्व विद्यमान रहता है।
एकीकरण -
अपने प्रकार्य की पूर्ति के लिए संरचना की तीसरी प्रकार्यात्मक
पूर्वआवश्यकता इकाइयों के एकीकरण या संगठन की होती है जब विभिन्न इकाइयों
में एकीकरण या संगठन बना रहता है तो संरचना का अस्तित्त्व विद्यमान रहता
है।और ये
एकीकरण लाने का कार्य सांस्कृतिक उपसंरचना करती है।
वह धार्मिक क्रिया-कलापों के माध्यम से या मनोरंजनात्मक
क्रिया-कलापों के माध्यम से समाज में एकीकरण या संगठन लाती है जिससे
संरचना का अस्तित्त्व बना रहता है।
तनाव प्रबन्धन-
अपने प्रकार्य की पूर्ति करने के लिए संरचना की चौथी प्रकार्यात्मक
पूर्वआवश्यकता इकाइयों के तनाव प्रबंधन की होती है अर्थात यदि किसी
कारणवश सामाजिक संरचना में असंतुलन उत्पन्न हो तो कुछ ऐसी इकाइयां अवश्य
होनी चाहिए जो उसमे संतुलन ला सके अर्थात संतुलन की ओर झुकाव बनाये रखे
और
यह कार्य एक उप इकाई पारिवारिक संरचना करती है
जो सामाजीकरण के माध्यम से समाज के मानक मूल्यों और प्रतिमानों को
सिखाती है जिसके कारण असंतुलन की स्थिति में व्यक्ति संतुलन बनाये रखने
का प्रयत्न करता है।
निष्कर्ष -
निष्कर्षतः संरचना की यही चार प्रकार्यात्मक पूर्वआवश्यकतायें होती
हैं जिसे पारसन्स का AGIL Model कहा जाता है तथा इन चारों
प्रकार्यात्मक पूर्वआवश्यकताओं की पूर्ति समाज की विभिन्न इकाइयां
करती हैं।
नोट:-
व्यवस्था का सिलसिलेवार विश्लेषण सबसे पहले पार्सन्स ने अपनी
पुस्तक "The Structure of Social Action"(1937)में किया था।
पारसन्स ने अपनी बाद की पुस्तक "The Social System "(1951 )में
व्यवस्था को विस्तृत रूप में प्रस्तुत किया।
व्यवस्था से उनका तात्पर्य यह है की प्रत्येक सामाजिक संरचना में
दो मुख्य समस्याएं होती हैं -
1-आतंरिक समस्या बाह्य समस्या
2 -बाह्य समस्या
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