अलगाव का सिद्धांत

अलगाव का सिद्धांत -(Theory of Alienation)

अलगाव का अर्थ -

    सामाजिक सम्बन्धों में घनिष्ठता का अभाव या पायी जाने वाली दूरी ही अलगाव कहलाती  है। 

 
मार्क्स से पहले हीगल ने दर्शनशास्त्र में अलगाव के सिद्धांत का प्रयोग दार्शनिक परिप्रेक्ष्य में दिया था। हीगल के अनुसार मानव ईश्वर की प्रतिच्छाया है इसलिए सभी मानव समान हैं किन्तु जब यह मानव अपने अंदर गलत सोच जैसे- ऊँच -नींच ,हीनता -श्रेष्ठता आदि भावनाएं विकसित कर लेता है तो एक मानव का दूसरे मानव से अलगाव हो जाता है। हीगल के दार्शनिक मित्र फ्यूरोबैक ने हीगल का समर्थन किया और कहा की गलत सोच की वजह से ही अलगाव होता है। 

17 वीं शताब्दी में थॉमस हॉब्स के अनुसार- मानव स्वभाव से स्वार्थी,लालची और बेईमान होता है यही प्रवृत्तियां एक मानव से दूसरे मानव के अलगाव का कारण होती हैं। 

मार्क्स ने उपर्युक्त सभी विद्वानों के अलगाव सम्बन्धी विचारधाराओं का खंडन किया और कहा कि अलगाव न तो गलत सोच की वजह से विकसित होता है और न तो मानव में पायी जाने वाली प्रवृत्तियों के कारण बल्कि'अलगाव  का मूल कारण समाज होता है।'

अतः मार्क्स के अनुसार- समाज के कारण व्यक्ति के अंदर अलगाव का जन्म होता है। अलगाव व्यक्ति की वह मनोदशा है जिसमे उसे अपने कार्य पराये लगने लगते हैं और पराई शक्तियों द्वारा नियंत्रित एवं निर्देशित होने लगते हैं। 

मार्क्स अपने अलगाव की व्याख्या की शुरुआत थॉमस हॉब्स के कथन के खण्डन से करते हैं, मार्क्स के अनुसार मानव एक सृजनात्मक प्राणी है उसके अंदर आविष्कारी क्षमता पायी जाती है जिसके कारण मानव प्रतिदिन नए- नए कार्य करना चाहता है चूँकि वह नए कार्य पूर्ण मनोयोग से करता है इसलिए वह चाहता है की समाज उसके कार्य की प्रशंसा करे।अतः मानव को सबसे ज्यादा ख़ुशी तब होती है जब उसे प्रतिदिन नए-नए कार्य करने को मिलते हैं और समाज उसके कार्य की प्रशंसा करता है किन्तु जब मानव को प्रतिदिन एक ही  कार्य करने को मिलता है तो उसके अंदर की सृजनात्मकता मर जाती है और अरुचि की भावना जन्म ले लेती है और वही भावना अलगाव को जन्म  देती है इसलिए अलगाव का मूल कारण समाज है। 

मार्क्स के अनुसार पूंजीवाद समाज में  सबसे ज्यादा अलगाव श्रमिकों के अंदर विद्यमान होता है क्योंकि इसमें   श्रम विभाजन योग्यता या गुणों के आधार पर पाया जाता है इसलिए प्रत्येक श्रमिक को उसकी योग्यता के अनुसार एक ही प्रकार का कार्य करने को मिलता है जिससे उसके अंदर की सृजनात्मकता ख़त्म हो जाती है और अरुचि की भावना जन्म ले लेती है और वही भावना अलगाव को जन्म देती है। यदि श्रमिक उस कार्य को नया कार्य मानकर संरचनात्मक तरीके से करता भी है तो समाज उसको कार्य का श्रेय उसे न देकर उत्पादन के साधन के मालिक को देता है जिससे अरुचि की भावना उत्पन्न हो जाती है। जिससे सर्वप्रथम श्रमिक के मन में उस कार्य के प्रति अलगाव उत्पन्न हो जाता है। 

अलगाव के चरण -

१-काम के प्रति अलगाव 
२-उत्पादित वस्तु के प्रति अलगाव 
३-साथियों के प्रति अलगाव 
४-स्वयं के प्रति अलगाव 

             पहले चरण में श्रमिक के मन में कार्य के प्रति अलगाव  होता है, दूसरे चरण में उत्पादित वस्तु के प्रति अलगाव उत्पन्न हो जाता है,तीसरे  चरण में श्रमिक के मन में कार्य करने वाले साथियों के प्रति अलगाव उत्पन्न हो जाता है।और तब तक श्रमिक चारों तरफ से अलगाव से घिर जाता है तो अंततः उसके मन में स्वयं के प्रति अलगाव उत्पन्न हो जाता है और सारी रचनात्मकता मर जाती है जिससे वह एक मशीन की भांति जीविकोपार्जन के लिए यंत्रवत कार्य करता रहता है और पराई शक्तियों द्वारा नियंत्रित एवं निर्देशित होने लगता है। अर्थात निर्जीव श्रम सजीव श्रम पर शासन करने लगता है। 

निष्कर्ष -

निष्कर्षतः अलगाव का मुख्य कारण समाज ही होता है न की मानव की गलत सोच,स्वार्थ या लालच होता है। 

आलोचना -

इस सिद्धांत की आलोचना करते हुए मैक्स वेबर कहते हैं की पूंजीवाद समाज में अलगाव सबसे अधिक नौकरशाहों के मध्य पाया जाता है न कि श्रमिकों के मध्य क्योंकि नौकरशाह नियम कानून रुपी लोहे के पिंजड़े में जकड़े रहते हैं। 

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