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जून, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

समाजशास्त्रीय अवधारणाएँ (Sociological Concepts)

समाजशास्त्रीय अवधारणाएँ  सामाजिक संरचना  सामाजिक संरचना शब्द का प्रयोग स्पेन्सर तथा दुर्खीम की कृतियों से लेकर आधुनिक समाजशास्त्रीय साहित्य में प्रचुर मात्रा में हुआ है। सामान्यतः इसका प्रयोग समाजों को निर्मित करने वाली एक या अधिक विशेषताओं के सन्दर्भ में किया गया है। परिणामस्वरूप यह शब्द कहीं कहीं व्यवस्था,संगठन,संकुल,प्रतिमान,संरूप और यहाँ तक कि सम्पूर्ण समाज का पर्याय बन गया है।  सामाजिक संरचना की अवधारणा- जब किसी सामाजिक समूह अथवा समाज की संरचना की बात की जाती है तब हमारा तात्पर्य उस समूह के आतंरिक संगठन के स्थाई प्रतिमान अर्थात समूह के सदस्यों के बीच पाए जाने वाली सामाजिक सम्बन्धों के सम्पूर्ण ताने बाने से होता है। इन सम्बन्धों में सामाजिक क्रिया,भूमिकाएं ,प्रस्थितियाँ,संचार व्यवस्था,श्रम विभाजन,तथा आदर्शात्मक व्यवस्था को शामिल किया जाता है। सामाजिक सम्बन्...

मर्टन का सन्दर्भ-समूह सिद्धांत (Reference group)

मर्टन का सन्दर्भ-समूह सिद्धांत  सन्दर्भ-समूह क्या है ? सामान्यतः एक ऐसे समूह को सन्दर्भ समूह की संज्ञा दी जाती है जिसके साथ एक व्यक्ति अपना समीकरण बिठाता है अथवा समीकरण बिठाने की आकांक्षा रखता है तथा उसी के अनुरूप अपने मूल्यों,विश्वासों,मनोवृत्तियों को ढालने का प्रयास करता है तथा उसी के अनुरूप अपने व्यवहार को निर्देशित करता है। अर्थात "सन्दर्भ समूह वह समूह है जिसके आधार पर हर व्यक्ति के लिए अपनी उपलब्धियों,व्यवहार भूमिका, आकाँक्षाओं आदि का मूल्यांकन करना संभव होता है।" सन्दर्भ-समूह की अवधारणा- सन्दर्भ-समूह की अवधारणा को हरबर्ट हाइमैन ने 1942 में अपनी पुस्तक The Psychology of status में प्रतिपादित किया था। यह अवधारणा सदस्यता -समूह की अवधारणा के ठीक विपरीत अर्थों को प्रदर्शित करती है। सदस्यता समूह की भांति सन्दर्भ समूह का सदस्य होना अनिवार्य नहीं ...

मर्टन का मध्य अभिसीमा सिद्धान्त (Merton's Middle-Range Theory)

मर्टन का मध्य अभिसीमा सिद्धान्त या  मध्यवर्ती सिद्धांत  मध्यवर्ती सिद्धांत है क्या ? लघु कार्यवाहक प्राक्कल्पनाओं तथा अमूर्त महत सिद्धांतों के बीच के सिद्धांत को मध्यवर्ती सिद्धांत कहा जाता है।  मध्यवर्ती सिद्धांतों की रचना आनुभविक शोध के वास्तविक तथ्यों के आधार पर होती हैं तथा ये सीमित क्षेत्र से सम्बंधित होते हैं। मध्यवर्ती सिद्धांत के विचार का प्रतिपादन समाज विज्ञानों में सर्वप्रथम टी.एच.मार्शल ने 1946 में लन्दन विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता पद का भार ग्रहण करते समय अपने उद्बोधन में किया था। बाद में इस विचारधारा को R.K. मर्टन ने अग्रसर किया। रॉबर्ट किंग मर्टन द्वारा विकसित मध्य-श्रेणी सिद्धांत सूक्ष्म सिद्धांत और अनुभवजन्य अनुसंधान को एकीकृत करने के उद्देश्य से समाजशास्त्रीय सिद्धांत के लिए एक दृष्टिकोण है।यह दृष्टिकोण सामाजिक सिद्धांत के पहले से विकसित "भव्य" सिद्धां...

मर्टन का संरचनावाद या अनुरूपता एवं विपथगमन

मर्टन का संरचनावाद  या अनुरूपता एवं विपथगमन  संरचना शब्द का प्रयोग सामान्यतः किसी समष्टि की इकाइयों ,अंगों तथा अवयवों के ऐसे प्रतिमानित संबंधों के लिए किया जाता है जो अपेक्षाकृत स्थिर एवं स्थाई होते हैं। अतः किसी बृहत् रचना के विभिन्न भागों अथवा निर्मायक तत्त्वों के आपसी सम्बन्धों में जो एक व्यवस्था अथवा संगठन होता है उसे संरचना कहते हैं। मर्टन का संरचना सम्बन्धी विचार पार्सन्स के संरचना सम्बन्धी विचारों से प्रभावित है,और पार्सन्स संरचना की व्याख्या प्रस्थिति और भूमिका के सन्दर्भ में करते हैं इसलिए मर्टन भी संरचना की व्याख्या प्रस्थिति और भूमिका के सन्दर्भ में करते हैं और मानते हैं की संरचना का निर्माण भूमिका पुंज + प्रस्थिति पुंज +प्रस्थिति क्रम के माध्यम से होता है। मर्टन का सिद्धान्त समझने से पूर्व समझ लेते हैं की प्रस्थिति और भूमिका ह...