एमाइल दुर्खीम

एमाइल दुर्खीम-

(1858 -1917 )

जन्म -फ्रांस में हुआ था

 एमाइल दुर्खीम एक फ्रांसीसी समाजशास्त्री थे। उन्होंने औपचारिक रूप से समाजशास्त्र के अकादमिक अनुशासन की स्थापना की - और कार्ल मार्क्स और मैक्स वेबर के साथ-आमतौर पर आधुनिक सामाजिक विज्ञान के प्रमुख वास्तुकार के रूप में उद्धृत हुए।

एमाइल दुर्खीम को आधुनिक समाजशास्त्र का पिता कहा जाता है। इन्हे आगस्त काम्टे का उत्तराधिकारी भी कहा जाता है क्योंकि इनके ऊपर कोम्टे के प्रत्यक्षवाद का काफी प्रभाव था, इन्होने समाजशास्त्र की विषय वस्तु को स्पष्ट करने के साथ ही इसे एक स्वतंत्र एवं स्वायत्त विज्ञान के रूप में विकसित किया।  दुर्खीम को पहला अकादमिक समाजशास्त्री माना जाता है।

एमाइल दुर्खीम के अधिकांश कार्यों का संबंध यह था कि कैसे समाज आधुनिकता में अपनी अखंडता और सुसंगतता को बनाए रख सकता है, एक ऐसा युग जिसमें पारंपरिक सामाजिक और धार्मिक संबंध अब नहीं माना जाता है, और जिसमें नए सामाजिक संस्थान अस्तित्व में आए हैं।

1892 में सर्वप्रथम  पेरिस विश्वविद्यालय ने इन्हे समाजशास्त्र में  शोध उपाधि (P.H.D )प्रदान की।

प्रभाव -

एमाइल दुर्खीम पर सर्वाधिक प्रभाव सेंट साइमन,आगस्त काम्टे  तथा ब्रिटिश अर्थशास्त्री एडम स्मिथ  का रहा है। स्मिथ से प्रभावित होकर इन्होने 1893 में एक पुस्तक लिखी "The Division of labour " इसी पुस्तक में इन्होने "श्रम विभाजन का सिद्धांत" दिया।

एमाइल दुर्खीम औरउनके सिद्धांत-

अपने पूरे करियर के दौरान,इनका संबंध मुख्य रूप से तीन लक्ष्यों से था।

पहला, समाजशास्त्र को एक नए अकादमिक अनुशासन के रूप में स्थापित करना।

दूसरा, यह विश्लेषण करने के लिए कि आधुनिक युग में समाज अपनी अखंडता और सुसंगतता को कैसे बनाए रख सकते हैं, जब साझा धार्मिक और जातीय पृष्ठभूमि जैसी चीजों को अब ग्रहण नहीं किया जा सकता है।

तीसरा उन्होंने कानून, धर्म, शिक्षा और समाज तथा सामाजिक एकीकरण पर समान बलों के प्रभाव के बारे में बहुत कुछ लिखा।

अंत में दुर्खीम वैज्ञानिक ज्ञान के व्यावहारिक निहितार्थ से चिंतित थे।इनके काम के दौरान सामाजिक एकीकरण के महत्व को व्यक्त किया गया है। 

महत्वपूर्ण पुस्तके एवं सिद्धांत -

1 -The Division of labour (1893 )= श्रम विभाजन का  सिद्धांत  

2 -The Rules of Sociological  Method (1895 )=सामाजिक तथ्य का सिद्धांत

3 -The  Suicide (1897 )=आत्म हत्या का सिद्धांत 

4 -The Elementry form of the Religious life (1912 )=धर्म का प्रकार्यवादी सिद्धांत 

 एमाइल दुर्खीम विश्लेषणात्मक संप्रदाय के कट्टर समर्थक थे और समाजशास्त्र के पहले प्रोफेसर थे। इनकी पुस्तक The Division of Labour दो खंडो में विभाजित है -

प्रथम खंड- में सामाजिक घटनाओ से सम्बंधित श्रम विभाजन के कार्यो तथा प्रभाव की विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की गई है।

दूसरे खंड- में श्रम विभाजन की प्रकृति तथा कारणों की विवेचना है।

 एमाइल दुर्खीम  इस बात पर ज़ोर देते थे कि व्यक्ति के बजाय सामाजिक प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाना चाहिए।उनके अनुसार इन सामाजिक प्रक्रियाओं का ठोस रूप संस्थाओं और व्यवहार में अभिव्यक्त होता है जिनका अनुवीक्षण के आधार पर भी अध्ययन किया जा सकता है।दुर्ख़ाइम इन प्रक्रियाओं को सोशल फ़ैक्ट्स या सामाजिक तथ्यों की संज्ञा देते हैं।

एमाइल दुर्खीम को समाजशास्त्रीय अध्ययन में सांख्यिकी के सर्जनात्मक उपयोग करने का श्रेय भी जाता है। इस संबंध में उनकी रचना सुइसाइड एक मानक की तरह स्थापित है।

दुर्खीम का श्रम विभाजन का सिद्धांत- 

यह सिद्धांत इन्होने अपनी पुस्तक The Division of Labour में प्रतिपादित किया। इस रचना में दुर्ख़ाइम आधुनिक और पारम्परिक समाजों का फ़र्क दिखाते हुए यह प्रतिपादित करते हैं कि आधुनिक समाज जहाँ श्रम के विशेषीकरण पर आधारित होता है वहीं पारम्परिक समाज साझे विश्वासों पर चलता है। उनके अनुसार समाज के रूपों का यह अंतर नियमों की व्यवस्था के अंतर को भी दर्शाता है।
इस तरह आधुनिक समाज स्व- नियमन से संचालित होता है जबकि पारम्परिक समाज के नियम बाहरी विश्वासों और अनुमोदन पर टिके होते हैं।

 इनके अनुसार चूँकि साझे विश्वास सर्वमान्य नैतिकता के प्राधिकार पर टिके होते हैं इसलिए इन विश्वासों पर आधारित व्यवस्था शक्ति और दबाव के जरिए ही कायम रह सकता है। जबकि स्वनियमकारी या आधुनिक समाज स्वतंत्रता, समानता तथा न्याय जैसे तत्त्वों के बिना संतुलित नहीं रह सकता।

 एमाइल दुर्खीम मानते थे कि समाज के पारम्परिक और आधुनिक रूपों में विभ्रम के कारण तथा आधुनिक समाजों पर पारम्परिक कानून या नियम थोपने की प्रवृत्ति ही कई सामाजिक समस्याओं के लिए जिम्मेदार रही है। आधुनिक समाजों की यह व्याख्या इनके कृतित्व की विशिष्ट उपलब्धि मानी जाती है। 

 दुर्खीम यह सिद्धांत समाज के सन्दर्भ में देते हैं और कहते हैं की श्रम विभाजन ही समाज की संरचना तथा उसमे पाए जाने वाले संगठन एवं कानून का निर्धारण करता है। इनके अनुसार श्रम विभाजन के आधार पर दो प्रकार की सामाजिक संरचना होती है-

1 -सरल सामाजिक संरचना 

2 -जटिल सामाजिक संरचना 


सरल सामाजिक संरचना -

सरल  समाज में श्रम विभाजन सरल और कम पाया जाता है। यहाँ श्रम विभाजन लिंग और आयु के आधार पर होता है। इसमें यांत्रिक एकता पायी जाती  है तथा दमनकारी कानून पाया जाता है। इसमें सामूहिक चेतना तथा हम की भावना  पायी जाती है।अपराध समाज के विरुद्ध पाए जाते हैं।

जटिल सामाजिक संरचना-

जटिल समाज में श्रम विभाजन योग्यता के आधार पर पाया जाता है। जटिल समाज में जनसँख्या का आकार बड़ा होता है जिससे उत्पादन की आवश्यकता अधिक होती है इसलिए यहाँ जटिल श्रम विभाजन पाया जाता है। जटिल समाज में पायी जाने वाली एकता को सावयवी एकता कहा जाता है। यहाँ सामूहिक चेतना कम पायी जाती है तथा अपराध व्यक्ति के विरुद्ध पाए जाते हैं  एवं प्रतिकारी दंड की व्यवस्था पायी जाती है इसे क्षतिपूरक कानून कहा जाता है।

सामूहिक प्रतिनिधित्व का सिद्धांत =  एमाइल दुर्खीम

समूह मस्तिष्क का सिद्धांत =  एमाइल दुर्खीम

"जैसे -जैसे समाज सरल से जटिल होता जायेगा वैसे -वैसे नैतिकता का  घनत्व बढ़ता जायेगा " -एमाइल दुर्खीम 


एमाइल दुर्खीम 1917 में अपनी मृत्यु तक फ्रांसीसी बौद्धिक जीवन में एक प्रमुख शक्ति बने रहे, कई व्याख्यान पेश किए और ज्ञान, नैतिकता, सामाजिक स्तरीकरण, धर्म, कानून, शिक्षा और विचलन के समाजशास्त्र सहित विभिन्न विषयों पर प्रकाशित कार्य किए। 

निष्कर्ष -

एमाइल दुर्खीम के लिए समाजशास्त्र संस्थानों का विज्ञान था, इसके व्यापक अर्थ में शब्द को "सामूहिकता द्वारा स्थापित व्यवहारों की मान्यताओं और तरीकों" के रूप में समझा जाता है, जिसका उद्देश्य संरचनात्मक सामाजिक तथ्यों की खोज करना है।  इन्हे संरचनात्मक कार्यात्मकता का एक प्रमुख प्रस्तावक माना जाता है।  जो समाजशास्त्र और नृविज्ञान दोनों में एक मूलभूत परिप्रेक्ष्य है।
उनके विचार में, सामाजिक विज्ञान विशुद्ध रूप से समग्र होना चाहिए, जिसमें समाजशास्त्र को व्यक्तियों के विशिष्ट कार्यों तक सीमित होने के बजाय बड़े स्तर पर समाज के लिए जिम्मेदार घटनाओं का अध्ययन करना चाहिए।



इसे भी देखें :-

दुर्खीम का सामाजिक तथ्य का सिद्धांत





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