दुर्खीम का सामाजिक तथ्य का सिद्धांत

  सामाजिक तथ्य का सिद्धांत

सामाजिक तथ्य का तात्पर्य ऐसे मानव व्यवहार से है जिन्हे व्यक्ति समाज के सन्दर्भ में प्रतिपादित करता है। अर्थात सामाजिक तथ्य व्यवहार तथा कार्य करने का एक तरीका है,सोचने समझने का तरीका है जिसे व्यक्ति समाज के सन्दर्भ में करता है।

मानव व्यवहार दो तरीके के होते हैं -

१-सामाजिक मानव व्यवहार 

२-जैविकीय मानव व्यवहार 

सामाजिक मानव व्यवहार मनुष्य चेतन अवस्था में समाज के सन्दर्भ में करता है।

जैविकीय मानव व्यवहार अचेतन अवस्था में स्वयं के सन्दर्भ में करता है।

परिवार,विवाह,धर्म,प्रथा परंपरा ,भाषा ,आर्थिक व्यवस्था ,राजनैतिक व्यवस्था ,आत्महत्या ,अपराध  आदि सामाजिक व्यवहार के अंतर्गत आते है।

दुर्खीम का मानना था प्रत्यक्षवाद के माध्यम से ज्ञानेन्द्रियो द्वारा सामाजिक तथ्यों को देख सकते हैं,नाप तोल सकते हैं उनकी दर निकल सकते हैं अतः सामाजिक तथ्य सांसारिक वस्तुओ के बराबर है। अतः

सामाजिक तथ्य =सांसारिक वस्तुएं 

सामाजिक तथ्य की  विशेषताएं -

1-बाह्यकारी  

2-बाध्यकारी

3 -सामान्य 

बाह्यकारी - Super Individual  अर्थात इसका निर्माण एक व्यक्ति नहीं कर सकता बल्कि सामाजिक तथ्य का निर्माण समाज करता है।

बाध्यकारी - अगर समाज में रहना है तो समाज के नियमो कानूनों का पालन करना होगा। ये सकारात्मक होते हैं जिनसे समाज में संगठन एवं नियंत्रण आता है।

सामान्य -ये सामान्य हैं अर्थात दुनिया के सभी समाजो में पाए जाते हैं अर्थात सार्वभौमिक होते हैं। 

सामाजिक तथ्य के प्रकार -

1 -सामान्य सामाजिक तथ्य (General Social Fact) -ऐसे मानव व्यवहार जिन्हे व्यक्ति समाज के  सन्दर्भ में  सम्पादित करता है,जो समाज के अनुरूप होते हैं  और जिससे समाज में संगठन आता है। जैसे -सङक के बाईं ओर चलना।

2 -व्याधिकीय सामाजिक तथ्य (Pathological Social Fact )- जो मानव व्यवहार समाज के लिए विघटनकारी होते हैं या तो ये समाज से आगे चले जाते हैं या फिर समाज इनसे आगे चला जाता है। ऐसे मानव व्यवहार जो समाज के अनुरूप नहीं होते। 

दुर्खीम का मानना है की अपराध की एक निश्चित मात्रा समाज के लिए सकारात्मक होती है इससे समाज में परिवर्तन आता है)

"समाजशास्त्र सामाजिक तथ्यों का क्रमबद्ध अध्ययन करने वाला विज्ञान है "- एमाइल दुर्खीम 

"सामाजिक तथ्य विचारने ,अनुभव करने और व्यवहार करने के वे तरीके हैं जो व्यक्ति के अस्तित्व के परे होते हैं तथा जिनमे बाध्यता या दबाव की शक्ति होती है जिसके द्वारा वे व्यक्ति पर नियंत्रण स्थापित करते हैं " -एमाइल दुर्खीम 



इसे भी देखें :-

दुर्खीम का आत्महत्या सिद्धांत

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पारसंस का सामाजिक क्रिया का सिद्धान्त

मर्टन का सन्दर्भ-समूह सिद्धांत (Reference group)

पारसन्स का सामाजिक व्यवस्था का सिद्धांत