दुर्खीम - धर्म का प्रकार्यवादी सिद्धांत
धर्म का प्रकार्यवादी सिद्धांत
दुर्खीम ने अपनी पुस्तक
"धार्मिक जीवन के प्रारंभिक स्वरुप " में धर्म का
प्रकार्यवादी सिद्धांत प्रस्तुत किया। दुर्खीम अपना सिद्धांत
देने से पहले अपने पूर्ववर्ती धर्म सम्बन्धी विचारकों के विचारो का खंडन
करते हैं।
टायलर के आत्मवादी सिद्धांत - का खंडन करते हुए दुर्खीम कहते हैं की इस
सिद्धांत में आदिम मानव को आवश्यकता से अधिक बुद्धिमान मान लिया लिया गया
है तथा धर्म को बहुत सरल तरीके से परिभाषित किया गया है जबकि धर्म एक
जटिल संस्था है।
मैक्समूलर के प्रकृतिवाद का खंडन करते हुए कहते हैं की धर्म एक
सामाजिक तथ्य है और इस
सिद्धांत में समाज का कोई वर्णन नहीं किया गया है।
मानावाद का खंडन किया।
धर्म के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचार -
दुर्खीम का मानना है की धर्म एक सामाजिक प्रघटना है अतः धर्म का
निर्माण समाज करता है इसलिए समाज ही धर्म है, समाज ही ईश्वर है, और समाज ही
स्वर्ग का साम्राज्य है।पवित्र और अपवित्र की अवधारणा समाज सापेक्ष
होती है। पवित्र वस्तुओं को ही धर्म की संज्ञा दी जाती है। धर्म
निर्माण समाज इसलिए करता है जिससे समाज में संगठन बना रहे।
दुर्खीम दुनिया की सबसे प्राचीन जनजाति अरुंटा का अध्ययन करने ऑस्ट्रेलिया गए और
यहाँ पर उन्हें धर्म का एक स्वरुप
टोटमवाद मिला। टोटम
प्रकृति की सजीव या निर्जीव वस्तु है। दुर्खीम ने माना की
टोटेम दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म है और इसके द्वारा ही दुनिया के सभी
धर्मो की उत्पत्ति हुई है। समाज ही धर्म का निर्माण करता है टोटेम इस
सिद्धांत की पुष्टि करता है।
संक्षेप में दुर्खीम ने धर्म की व्याख्या निरीक्षण योग्य एक सामाजिक
तथ्य के रूप में की है न कि मानसिक या आध्यत्मिक तथ्य के रूप में जैसा की
सामान्यतः इसके विषय में माना जाता है।
गोल्डेन विज़र ने
दुर्खीम के इस सिद्धांत की आलोचना दो आधारों पर की और कहा -
१- एक तरफ आप प्रकृतिवाद की आलोचना करते हैं और दूसरी तरफ अपने सिद्धांत
में प्रकृति का सहारा लेते हैं।
२- एक छोटी सी जनजातीय समूह के आधार पर दुनियां के सभी धर्मो
की व्याख्या करना अतर्कसंगत प्रतीत होता है।
दुर्खीम को समष्टिवादी विचारक माना जाता है
क्योंकि दुर्खीम सदैव समूह और समाज को महत्त्व देते
हैं। दुर्खीम व्यक्ति और समाज के सम्बन्ध को परिभाषित करते हुए कहते
हैं की समाज ही सब कुछ है और व्यक्ति उसके हाथ की कठपुतली है जैसा
समाज होगा वैसा व्यक्ति होगा।
दुर्खीम जीवनपर्यन्त प्रत्यक्षवादी विचारधारा का पालन करते
रहे। दुर्खीम ने दो प्रकार्यवादी सिद्धांत दिए-
१-श्रम विभाजन का प्रकार्य
२-धर्म का प्रकार्यवादी सिद्धांत
२-धर्म का प्रकार्यवादी सिद्धांत
दुर्खीम
सरल समाज को आत्मनिर्भर समाज कहते हैं।
दुर्खीम को समाजशास्त्र में 'प्रकार्यवादी परिप्रेक्ष्य''
की शुरुआत करने का श्रेय दिया जाता है। दुर्खीम ने समाजशास्त्र को विज्ञान
बनाने के प्रयासों के साथ-साथ
सामाजिक अभियांत्रिकी' के विचार को भी प्रश्रय दिया।
दुर्खीम ही पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने सामाजिक प्रकार्य की अवधारणा
का प्रयोग एक सुस्पष्ट सिद्धांत के रूप में किया है।
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