मैक्स वेबर का आदर्श प्रारूप
मैक्स वेबर का आदर्श प्रारूप
( Ideal Type of Max Weber )
वेबर को आधुनिक
समाजशास्त्र का दूसरा संस्थापक कहा जाता है। क्योंकि वेबर समाजशास्त्र को
विज्ञान बनाना चाहते थे किन्तु प्रत्यक्षवादी पद्धति के माध्यम से नहीं
बल्कि किसी अन्य माध्यम से। वेबर ने समाजशास्त्र के अध्ययन के लिए
दो पद्धतियों का प्रयोग किया -
1 -वस्तुनिष्ठ पद्धति (Objective Methodology)
2 -व्यक्तिनिष्ठ पद्धति (Subjective Methodology)
वस्तुनिष्ठ पद्धति (Objective Methodology)-
अध्ययन का एक ऐसा तरीका जिसमे अनुसंधानकर्ता तटस्थ होकर मानव व्यवहारों का
अध्ययन करता है। इसमें
समाज सापेक्ष अध्ययन नहीं किया जाता है। इसमें नैतिकता मानक मूल्यों इत्यादि के
आधार पर घटना का यथार्थ वर्णन किया जाता है। ये मूल्यविहीन समाजशास्त्र पर
बल देती है।
व्यक्तिनिष्ठ पद्धति (Subjective Methodology)-
इसमें घटना का अध्ययन समाज सापेक्ष किया जाता है।सामाजिक परिस्थितियों को
ध्यान में रखकर इसका अध्ययन किया जाता है। ये मूल्यांकनात्मक समाजशास्त्र
पर बल देती है।
वेबर
के अनुसार समाज में मानव व्यवहार के यथार्थ अध्ययन के लिए इन दोनों
पद्धतियों का प्रयोग किया जाना चाहिए ,किन्तु सदैव ध्यान रखना चाहिए की एक
मानव व्यवहार के अध्ययन में दोनों पद्धतियों का प्रयोग एक साथ न किया
जाये।
वेबर
मानव व्यवहार के अध्ययन के लिए इन दोनों पद्धतियों के आधार पर
आदर्श प्रारूप एवं
वर्स्टेहन पद्धति का प्रयोग करते हैं।
आदर्श प्रारूप का तात्पर्य एक ऐसी रूपरेखा से है जो कि सामाजिक घटनाओं में
निहित तार्किकता या समानता इत्यादि के आधार पर निर्मित किया जाता है।अर्थात
आदर्श प्रारूप अनुसंधानकर्ता के मस्तिष्क की एक रचना है जिसका निर्माण
सामाजिक घटना में निहित तार्किकता या समानता के आधार पर होता है।
वेबर ने इसका प्रयोग सामाजिक घटना की सत्यता को समझने या घटना के
वास्तविक विश्लेषण करने के सन्दर्भ में एक उपकरण या साधन के रूप में
किया।
वेबर के अनुसार वास्तव में सामाजिक घटनाओ का क्षेत्र अत्यधिक
विस्तृत और जटिल है इस कारण अध्ययन कार्य तथा घटनाओं के विश्लेषण में
सुविधा और यथार्थता के लिए ये आवश्यक है की समानताओं के आधार पर
विचारपूर्वक तथा तर्कसंगत ढंग से कुछ वास्तविक घटनाओं के उन पक्षों का चयन
कर लिया जाये जो सम्पूर्ण घटना का प्रतिनिधित्व करते हैं और उन्ही के आधार
पर एक ऐसा प्रारूप बनाया जाये कि उस प्रकार की घटना की व्याख्या के लिए वह
प्रारूप सदैव आदर्श या सहायक का कार्य करे तथा मार्गदर्शक बने।
यहाँ आदर्श का तात्पर्य आदर्शात्मक विचारों ,मानक मूल्यों से नहीं है
बल्कि यहाँ आदर्श का तात्पर्य एक विशिष्ट श्रेणी या प्रकार से है जो उस
प्रकार की समस्त घटनाओं या क्रियाओं की वास्तविकता को व्यक्त करता है।
चूँकि इससे अध्ययन कार्य में अधिकाधिक यथार्थता या सुतथ्यता आती है इसलिए
ये अनुसंधानकर्ता के लिए आदर्श का कार्य करता है।
वेबर के अनुसार आदर्श प्रारूप का न तो कोई निश्चित क्षेत्र होता है
और न ही कोई निश्चित संख्या होती है अतः यदि सामाजिक घटनाओं के आदर्श
प्रारूप हो सकते हैं तो राजनीतिक घटनाओं के भी आदर्श प्रारूप बन सकते
हैं। धार्मिक घटनाओं के भी आदर्श प्रारूप बन सकते हैं।यहाँ
तक की चोरों डकैतों और वेश्याओं के भी आदर्श प्रारूप बन सकते
हैं।
किसी भी सामाजिक घटना का आदर्श प्रारूप बनाना है तो विभिन्न समाजों में उन
घटनाओं का अध्ययन करना होगा। उन सभी समाजों में घटने वाली समान घटनाओं में
कुछ न कुछ समान विशेषता अवश्य होगी और उन्ही समान या तार्किक पक्षों
को क्रमबद्ध तरीके से संकलित करके एक प्रारूप का निर्माण करिये तो वह
प्रारूप उस प्रकार की सामाजिक घटनाओं की व्याख्या करने में सहायक का कार्य
करेगा इसलिए इसे आदर्श प्रारूप कहा जाता है।
वेबर आदर्श प्रारूप की धारणा को विकसित करते हुए कहते हैं की
"यह कोई नवीन अवधारणा ,वस्तु या पद्धति नहीं है बल्कि मेरा उद्देश्य
केवल अन्य सामाजिक विज्ञानों की अपेक्षा समाजशास्त्र में भी अधिक
यथार्थता और स्पष्टता लाना है जिससे कि तार्किक आधारों पर मानवीय
व्यवहार या क्रियाओं के कार्य- कारण सम्बन्धों का अधिक यथार्थ या
व्यवस्थित ढंग से अध्ययन या विश्लेषण संभव हो सके और इस विश्लेषण के
माध्यम से किसी भी व्यवस्था या सामाजिक घटना की खामियों या विसंगतियों
का पता लगाया जा सके। "
उदाहरणस्वरूप
"सभी समाजों की
नौकरशाही (Bureaucracy)में कुछ न कुछ समान विशेषता या तार्किकता अवश्य होगी और उन्ही समान
पक्षों को क्रमबद्ध रूप से संकलित करके एक आदर्श प्रारूप का
निर्माण किया जाये तो यह प्रारूप सभी समाजों की नौकरशाही
के लिए दिशा निर्देशक का कार्य करेगा।"
आदर्श प्रारूप की विशेषताएं -
1 -आदर्श प्रारूप न तो औसत प्रारूप है न सामान्य बल्कि वास्तविक के
कुछ विशिष्ट तत्त्वों के विचारपूर्वक सम्मिलन तथा चुनाव द्वारा निर्मित
आदर्शात्मक मानक है।
2 -आदर्श प्रारूप सब कुछ का विश्लेषण या वर्णन नहीं करता बल्कि यह तो
सामाजिक घटना के अति महत्त्वपूर्ण पक्षों का निरूपण करता है इसलिए आदर्श
प्रारूप में कुछ पक्षों को उनके विशुद्ध रूप में प्रस्तुत किया जाता है और
कुछ को छोड़ दिया जाता है इससे आदर्श प्रारूप में अनिश्चितता या अस्पष्टता
नहीं आ पाती है और वह अधिकाधिक यथार्थ बन जाता है।
3 - सामाजिक क्षेत्र में किसी भी प्रकार के स्थिर सिद्धांत की
प्रणाली संभव नहीं है क्योंकि सामाजिक घटनाएं परिस्थितियों के अनुसार घटती
हैं और वो भिन्न होती हैं और उन घटनाओं का आदर्श प्रारूप अनुसंधानकर्ता के
मस्तिष्क की एक विशेष उपज है इसलिए घटनाओं की व्याख्या या विश्लेषण
में आदर्श प्रारूप को अंतिम मान लेना तार्किक नहीं होगा बल्कि
ये यथार्थता तक पहुँचने में या तुलनात्मक अध्ययन में एक सहायक या दिशा
निर्देशक के रूप में कार्य कर सकता है।
वेबर
ने ऐतिहासिक घटनाओं के अध्ययन के आधार पर तीन प्रकार के आदर्श प्रारूप
का निर्माण किया जो निम्न है -
क -
शक्ति एवं सत्ता का आदर्श प्रारूप
ख -
प्रोटेस्टेंट धर्म से पूंजीवाद का आदर्श प्रारूप
ग - नौकरशाही का आदर्श प्रारूप
निष्कर्ष -
निष्कर्षतः आदर्श प्रारूप अनुसंधानकर्ता के मस्तिष्क की एक ऐसी रचना है जो
किसी भी सामाजिक व्यवस्था या घटना के अध्ययन में तथा उसकी अच्छाइयों और
कमियों के विश्लेषण के सन्दर्भ में एक सहायक के रूप में कार्य करता है न कि
अंतिम रूप से उस घटना की यथार्थ व्याख्या करता है।
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