मर्टन का प्रकार्यवाद

मर्टन का प्रकार्यवाद



मर्टन अपने पहले के विद्वानों जैसे टालकॉट पारसन्स ,R.C. ब्राउन ,मैलिनोवस्की के प्रकार्यवादी विचारों से बहुत प्रभावित थे। इन्होने प्रकार्य शब्द का प्रयोग पाँच अर्थों में बताया है -
1-गणित में प्रकार्य शब्द का प्रयोग 
2-उपयोगी क्रिया कलाप के सन्दर्भ में प्रकार्य शब्द का प्रयोग
3-उत्सव के सन्दर्भ में प्रकार्य शब्द का प्रयोग
4-मशीनों के सन्दर्भ में प्रकार्य शब्द का प्रयोग
5-सामाजिक व्यवस्था के सन्दर्भ में प्रकार्य शब्द का प्रयोग

समाजशास्त्र में प्रकार्य शब्द का प्रयोग सामाजिक व्यवस्था के सन्दर्भ में किया जाता है।

मर्टन के प्रकार्यवाद को संरचनात्मक प्रकार्यवाद कहा जाता है। 

मर्टन प्रकार्य शब्द का प्रयोग पांचवे अर्थ के सन्दर्भ में अर्थात सामाजिक व्यवस्था तथा उसके इकाइयों के मध्य पाए जाने वाले सम्बन्ध के सन्दर्भ में प्रतिपादित करते हैं। किन्तु अपने प्रकार्यवादी विचारधारा का प्रतिपादन अपने से पहले के सभी प्रकार्यवादी विद्वानों के प्रकार्यवादी विचारधारा को आधार मानकर प्रस्तुत करते हैं।
 इन्होने पहले के प्रकार्यवादियों की विचारधारा का अध्ययन किया, फिर उसका सारांश निकाला, फिर उसकी आलोचना किया।अर्थात मर्टन का प्रकार्यवाद तीन भागों में बंटा है।

1-सारांश 

2-आलोचना 

3-संसोधित रूप 

प्रकार्यवादी विचारधारा का सारांश-

मर्टन अपने से पहले के सभी प्रकार्यवादी विद्वानों के प्रकार्यवादी विचारधारा का सारांश निकालते हैं और उसे तीन बिंदुओं में समाहित कर दिया। वे तीन बिन्दु निम्नलिखित हैं -

1-प्रकार्यात्मक एकता( Functional Unity )
2-सार्वभौमिक प्रकार्यवाद (Universal Functionalism)
3-प्रकार्यात्मक अपरिहार्यता (Functional inevitability)

प्रकार्यात्मक एकता( Functional Unity )-

पहले के सभी प्रकार्यवादियों ने चाहे वो मैलिनोवस्की हों या R.C. ब्राउन या टालकॉट पारसन्स इन सभी ने अपनी प्रकार्यवादी विचारधारा में इकाइयों के मध्य पायी जाने वाली प्रकार्यात्मक एकता को अधिक महत्त्व दिया। 

सार्वभौमिक प्रकार्यवाद (Universal Functionalism)-

पहले के सभी प्रकार्यवादियों टालकॉट पारसन्स,ब्राउन तथा मैलिनोवस्की के अनुसार सभी इकाइयां जहाँ भी जाएंगी वो अपना प्रकार्य करेंगी। कोई इकाई एक व्यक्ति की आवश्यकता की पूर्ति करती है तो दूसरे व्यक्ति की भी आवश्यकता की पूर्ति करेगी। 

प्रकार्यात्मक अपरिहार्यता (Functional inevitability)-

टालकॉट पारसन्स,ब्राउन तथा मैलिनोवस्की के अनुसार किसी भी इकाई को अपना अस्तित्त्व बनाये रखने के लिए प्रकार्य करना अनिवार्य है। 

मर्टन द्वारा तीनों बिन्दुओं की आलोचना-

पहले बिन्दु की आलोचना -

मर्टन पहले बिन्दु की आलोचना करते हुए कहते हैं की किसी भी सामाजिक व्यवस्था का निर्माण विभिन्न इकाइयों से होता है। ऐसा भी हो सकता है की कुछ इकाइयों के सम्बन्ध आपस में सहयोगात्मक न हों और वे सामाजिक व्यवस्था को बिघटित करने का प्रयत्न करती हों। 
पहले के प्रकार्यवादियों ने इकाइयों के मध्य होने वाले संघर्ष को महत्त्व नहीं दिया है उन्होंने मात्र इकाइयों के मध्य पाए जाने वाले सहयोगात्मक सम्बन्ध को ही महत्त्व दिया इसलिए उनका प्रकार्यवाद प्रकार्य की एक पक्षीय व्याख्या करता है। 

दूसरे बिन्दु की आलोचना -

मर्टन दूसरे बिन्दु की आलोचना करते हुए कहते हैं कि पहले के प्रकार्यवादी प्रकार्य को सार्वभौमिक बताते हैं जबकि प्रकार्य समाज या स्थान सापेक्ष होता है। सार्वभौमिक प्रकार्य का अर्थ है कि कोई इकाई किसी भी व्यक्ति के पास जाये वो उसके किसी न किसी आवश्यकता की पूर्ति अवश्य करेगी किन्तु ऐसा जरुरी नहीं है कि यदि एक इकाई किसी एक समाज के लिए प्रकार्य का कार्य करे तो वो दूसरे समाज के लिए भी प्रकार्य करेगी।
जैसे -मसाई जनजाति में चेहरे पर थूकने की प्रथा उनके समाज के लिए प्रकार्यात्मक है जबकि अन्य समाजों के लिए अप्रकार्यात्मक। अर्थात प्रकार्य समाज या स्थान सापेक्ष होता है। 

तीसरे बिन्दु की आलोचना -

मर्टन तीसरे बिन्दु की आलोचना करते हुए कहते हैं कि पहले के प्रकार्यवादी कहते हैं कि यदि कोई भी इकाई अपने प्रकार्य की पूर्ति करना बंद कर दे तो उसका अस्तित्त्व समाप्त हो जाता है तथा व्यक्ति या समाज उसे उठाकर बाहर फेंक देता है ,किन्तु ऐसा नहीं है यदि कोई इकाई किसी कारणवश कार्य करना बंद कर देती है तो उस इकाई के प्रकार्य की पूर्ति कोई दूसरी इकाई करती है अतः पहले के प्रकार्यवादियों ने प्रकार्यात्मक विकल्पता को ध्यान में नहीं रखा। 

मर्टन द्वारा प्रकार्यवाद का संशोधित रूप -

मर्टन ने अपने प्रकार्यवाद की व्याख्या आचार संहिता(Protocol) और रूपरेखा(Paradigm) के माध्यम से किया। 

इनके अनुसार यदि किसी समाज के प्रकार्य का अध्ययन करना है तो पहले उस समाज की आचारसंहिता का अध्ययन करना होगा। अर्थात उस समाज की संस्कृति ,मानक मूल्यों इत्यादि का अध्ययन करने से यह ज्ञात हो जायेगा की कौन सी इकाई प्रकार्य कर रही है और कौन सी इकाई अकार्य कर रही है।
मर्टन ने प्रकार्य की व्याख्या करने के लिए आदर्श प्रारूप जैसी एक रूपरेखा बनाई और उसके 11 बिंदुओं के बारे में बताया। उनमे से कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदु निम्न हैं -

1- उस मद की पहचान करिये जिसके प्रकार्य का अध्ययन करना है। 

2- इस बिंदु के अंतर्गत उद्देश्य एवं प्रकार्य दोनों को अलग-अलग रखकर देखना चाहिए क्योंकि उद्देश्य व्यक्ति सापेक्ष होता है जबकि प्रकार्य समाज सापेक्ष होता है। 

उदाहरण -किसी मूर्तिकार की मूर्ति को यदि पुरस्कार मिल जाये तो यह उसका प्रकार्य है जो समाज में निहित है और यदि वह मूर्ति का निर्माण जीविकोपार्जन के लिए करता है तो यह उसका उद्देश्य है।
3- किसी इकाई का अध्ययन प्रकार्य ,अकार्य और दुष्प्रकार्य तीनों अवधारणाओं के आधार पर करना चाहिए। 

4- इकाई के सम्बन्ध में सदैव प्रकट एवं अप्रकट दोनों प्रकार्यों का अध्ययन किया जाना चाहिए क्योंकि कभी-कभी किसी इकाई का प्रकट प्रकार्य कुछ और होता है तथा अप्रकट प्रकार्य कुछ और होता है। 

प्रकट प्रकार्य का तात्पर्य इकाइयों द्वारा अवलोकित वो परिणाम जो कर्ता द्वारा मान्य तथा इच्छित हों। 

अप्रकट प्रकार्य का तात्पर्य  इकाइयों द्वारा अवलोकित वो परिणाम जो कर्ता द्वारा मान्य व इच्छित न हों। 

उदाहरण - न्यू एरोजिना (अमेरिका )में जब सूखा पड़ जाता है तो Red Indians या Hopy Indians नामक जनजाति के लोग पहाड़ों से पत्थर गिराते हैं। उनका मानना है कि जिस प्रकार पत्थर गण-गण की आवाज करके गिरता है उसी प्रकार बादल भी गण-गण की आवाज के साथ बरसेगा। अतः बारिश कराना प्रकट प्रकार्य है किन्तु इस कृत्य के माध्यम से उनके बीच आने वाला संगठन अप्रकट प्रकार्य है। 

5- इकाइयों के अध्ययन के लिए प्रकार्यात्मक विकल्पता (Functional Alternative )को ध्यान में रखना चाहिए। 
यही कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दु हैं जो मर्टन के संरचनात्मक प्रकार्यवाद की व्याख्या करने में तार्किक हैं। 

निष्कर्ष -

इनके प्रकार्यवाद की काफी आलोचना भी हुई किन्तु इनके सिद्धांत की भले ही कितनी भी आलोचना क्यों न हुई हो किन्तु इन्होने प्रकार्यवाद का जो भी संशोधित रूप प्रस्तुत किया वो निश्चित रूप से इनको प्रकार्यवादियों की श्रेणी में सर्वोच्च स्थान पर बैठा देता है जो स्वतः ही इनके महत्त्व तथा प्रासंगिकता को दर्शाता है।


रॉबर्ट किंग मर्टन  


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