वेबर का सामाजिक क्रिया का सिद्धांत
मैक्स वेबर का-सामाजिक क्रिया का सिद्धांत -
मैक्स वेबर
के अनुसार सामाजिक क्रिया का तात्पर्य मानव व्यवहार से है।अतः इनके
अनुसार समाजशास्त्र मानव व्यवहार का अध्ययन करने वाला विषय है। परन्तु सभी
प्रकार का मानव व्यवहार समाजशास्त्र की अध्ययन विषय वस्तु नहीं है कुछ मानव
व्यवहार चेतन अवस्था में सम्पादित किये जाते हैं और कुछ मानव व्यवहार अचेतन
अवस्था में सम्पादित किये जाते हैं। अचेतन अवस्था में सम्पादित किये जाने
वाले कार्य का अध्ययन
समाजशास्त्र के अंतर्गत
नहीं किया जाता है क्योंकि इसका कोई सामाजिक उद्देश्य नहीं होता है।ये मानव
व्यवहार न तो समाज को प्रभावित करता है न समाज से प्रभावित होकर सम्पादित
किया जाता है।जैसे-पलक झपकना,नींद में चलना इत्यादि।
चेतन अवस्था में व्यक्ति की सोच कार्य करती है इस अवस्था में सम्पादित
कार्य का अध्ययन समाजशास्त्र के अंतर्गत किया जाता है क्योंकि इनका कोई न
कोई सामाजिक उद्देश्य होता है यह उद्देश्यपूर्ण,बोधपूर्ण एवं अर्थपूर्ण
होता है ये मानव व्यवहार समाज को प्रभावित करते हैं तथा समाज से
प्रभावित होकर सम्पादित किये जाते हैं।ऐसे मानव व्यवहारों को वेबर
सामाजिक क्रिया कहते हैं।
अर्थात "सामाजिक क्रिया का तात्पर्य व्यक्ति द्वारा सम्पादित किये
जाने वाले ऐसे मानवीय व्यवहारों से है जो या तो दूसरे व्यक्तियों
के भूत भविष्य एवं वर्तमान से प्रभावित होकर सम्पादित किये जाते हैं या
दूसरे व्यक्तियों के भूत भविष्य एवं वर्तमान को प्रभावित करते
हैं।" उदाहरणस्वरूप -दो साईकिल सवारों का आपस में टकराने के बाद बहस करना।
वेबर का उद्देश्य समाजशास्त्र को विज्ञान बनाना था ये समाजशास्त्र में
सामाजिक क्रिया के पीछे के उद्देश्य को जानने के लिए पद्धतिशास्त्र का
प्रयोग करते हैं जिसे वर्स्टेहन पद्धति के नाम से जाना जाता है।
वर्स्टेहन पद्धति-
वर्स्टेहन पद्धति का तात्पर्य क्रिया के बीचों बीच स्वयं को रखकर उस क्रिया
का अध्ययन करना है। यह क्रिया के उद्देश्य को समझने का एक तरीका है।
वर्स्टेहन पद्धति के चरण -
इसके दो चरण हैं -
१-प्रत्यक्षात्मक समझने का तरीका-(Direct Method of Understanding )
२-वर्णनात्मक समझने का तरीका-(Explanatory Method of Understanding )
प्रत्यक्षात्मक समझने का तरीका-(Direct Method of Understanding )
इस चरण के अंतर्गत अनुसंधानकर्ता क्रिया करने वाले व्यक्ति को दूर से देखकर
ही उसके उद्देश्य का अनुमान लगा लेता है।इसे प्रत्यक्षात्मक समझने का तरीका
कहते हैं।
वर्णनात्मक समझने का तरीका-(Explanatory Method of Understanding )
इसके अंतर्गत अनुसंधानकर्ता क्रिया करने वाले व्यक्ति के समीप जाकर उसका
उद्देश्य ज्ञात करता है।अर्थात इस पद्धति के माध्यम से मानव व्यवहार के
पीछे के उद्देश्य को समझा जाता है यदि वो उद्देश्य समाज को प्रभावित
करता है या समाज से प्रभावित होकर सम्पादित किया जाता है
तो ऐसे मानव व्यवहार को सामाजिक क्रिया कहा जायेगा और
उसे समाजशास्त्र के अध्ययन की विषय वस्तु कहेंगे।
वेबर के अनुसार चार प्रकार की सामाजिक क्रिया ऐसी है जिसका अध्ययन
समाजशास्त्र के अंतर्गत किया जाता है। अर्थात सामाजिक क्रिया चार प्रकार की
होती है।
सामाजिक क्रिया के प्रकार -
वेबर के अनुसार
सामाजिक क्रिया चार प्रकार
की होती है-
१-लक्ष्य पर आधारित सामाजिक क्रिया / तार्किक क्रिया -
इसके अंतर्गत लक्ष्य को ध्यान में रखकर सम्पादित किया गया मानव व्यवहार आता
है।जैसे-परीक्षा पास करने के लिए कड़ी मेहनत करना।
२-मूल्य पर आधारित सामाजिक क्रिया -
इसके अंतर्गत मानक मूल्यों पर आधारित मानव व्यवहार आते हैं जैसे- बड़ों के
पैर छूना, सड़क पर बाईं ओर चलना, परोपकार ,दया आदि।
३-भावात्मक सामाजिक क्रिया -
इसके अंतर्गत भावनाओं पर आधारित होकर किये गए मानव व्यवहार आते हैं जैसे
किसी से विछ्ड़ने पर रोना, किसी बात पर आश्चर्यचकित होना,किसी बात पर
हंसना आदि।
४-परम्परागत सामाजिक क्रिया -
इसके अंतर्गत परम्पराओं को ध्यान में रखकर किये जाने वाले मानव व्यवहार आते
हैं जैसे पिता द्वारा पुत्र को पैसे देना या पिता द्वारा पुत्र को सत्ता का
हस्तांतरण।
इन्ही चार प्रकार के मानव व्यवहार का अध्ययन समाजशास्त्र के अंतर्गत किया
जाता है।
मैक्स वेबर के अनुसार -"समाजशास्त्र सामाजिक क्रिया का उद्देश्यपूर्ण ,बोधपूर्ण ,और
अर्थपूर्ण अध्ययन करने वाला विषय है।"
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