मैक्स वेबर का सामाजिक परिवर्तन का सिद्धांत
मैक्स वेबर का सामाजिक परिवर्तन का सिद्धांत
या
प्रोटेस्टेंट धर्म से पूंजीवाद का विकास
मैक्स वेबर का सामाजिक परिवर्तन का सिद्धांत
कार्ल मार्क्स
के परिवर्तन सिद्धांत का संशोधित रूप है इसलिए इसमें मार्क्स के
सामाजिक परिवर्तन की झलक दिखाई पड़ती है।
वेबर, मार्क्स के सामाजिक परिवर्तन को संशोधित करते हुए
कहते हैं कि- मार्क्स के अनुसार सामाजिक परिवर्तन का एक मात्र आधार आर्थिक
व्यवस्था है।जबकि वेबर के अनुसार आर्थिक व्यवस्था सामाजिक परिवर्तन का
एक महत्त्वपूर्ण कारक हो सकती है किन्तु एक मात्र आधार नहीं हो सकती
क्योंकि कभी-कभी
धर्म भी समाज में परिवर्तन ला देता है इसलिए धर्म भी परिवर्तन का एक
महत्त्वपूर्ण कारक हो सकता है।
जैसे- यूरोप में पहले सामंतवादी व्यवस्था पायी जाती थी किन्तु मध्य काल में जब यूरोप में प्रोटेस्टेन्ट धर्म का उदय हुआ तो सामंतवादी व्यवस्था नष्ट हो गई और पूंजीवादी व्यवस्था विद्यमान हो गई जिसमे धार्मिक,आर्थिक और नैतिक विचारधारा थी। यूरोप में पूंजीवाद प्रोटेस्टेन्ट धर्म के कारण ही आया इसलिए वेबर ने कहा कि यूरोपीय समाज में परिवर्तन का एक महत्त्वपूर्ण कारण धर्म है।
मैक्स वेबर के अनुसार प्रोटेस्टेन्ट धर्म में कुछ ऐसी आचार संहिता विद्यमान थी जिसके कारण पूंजीवाद आया।
वो आचार संहिता निम्न है -
१- मेहनत का कोई विकल्प नहीं है। लक्ष्य तक पहुँचने के लिए सिर्फ मेहनत ही एक साधन है। रात दिन पागलों की तरह मेहनत करिये और साधुओं की तरह जीवन व्यतीत करिये।
२- सबकुछ पूर्व निर्धारित है। किस्मत को जानने का कोई तरीका नहीं है।
३- किस्मत को जानने का एक अप्रत्यक्ष तरीका है वह यह है कि ईश्वर अपना राज काज चलाने के लिए धरती से कुछ व्यक्तियों को चुनता है और वही चुना जाता है जिसकी किस्मत अच्छी होती है।
४- ईश्वर उसे ही चुनता है जिसे समाज में सम्मान प्राप्त होता है।
५- सम्मान उसे ही प्राप्त होता है जिसके पास पूँजी होती है।
यह आचार संहिता लोगों के अंदर पैसा कमाने का जूनून पैदा करती है। जिस दिन व्यक्ति को समाज में सम्मान प्राप्त हो जाता था उस दिन पूँजी कमाना बंद कर देता था। अतः परिवर्तन का एक महत्त्वपूर्ण कारण धर्म है।
इस धर्म में भी ऐसी कोई आचार संहिता नहीं पायी जाती थी जिससे पूँजी कमाने का जूनून पैदा हो।
निष्कर्षतः - वेबर के अनुसार-"आर्थिक व्यवस्था और धर्म दोनों ही सामाजिक परिवर्तन के सहायक कारक होते हैं।" जहाँ आर्थिक तत्त्व और आचार संहिता दोनों होती हैं वहां पूंजीवाद होता है। अर्थात -
आर्थिक तत्त्व + विचारधारा = सामाजिक परिवर्तन
धर्म का समाजशास्त्र -
यह समाजशास्त्र की एक शाखा है जिसके अंतर्गत धर्म का अध्ययन किया जाता है। इस शाखा को समाज से परिचित कराने का श्रेय दुर्खीम को जाता है।
वेबर दुर्खीम के इस सिद्धांत से प्रभावित होकर दुनियाँ के ६ महान धर्मों का अध्ययन करते हैं और मानते हैं की धर्म समाज में परिवर्तन का महत्त्वपूर्ण कारक है क्योंकि प्रोटेस्टेन्ट धर्म के उदय के फलस्वरूप ही यूरोपीय समाज में पूँजीवाद आया क्योंकि प्रोटेस्टेन्ट धर्म में ऐसी आचार संहिता थी जिसने पूँजीवाद को जन्म दिया।
निष्कर्षतः धर्म समाज में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है चाहे संगठन लाने के सन्दर्भ में चाहे परिवर्तन लाने के सन्दर्भ में। यही वेबर का सामाजिक परिवर्तन का सिद्धांत है।
जैसे- यूरोप में पहले सामंतवादी व्यवस्था पायी जाती थी किन्तु मध्य काल में जब यूरोप में प्रोटेस्टेन्ट धर्म का उदय हुआ तो सामंतवादी व्यवस्था नष्ट हो गई और पूंजीवादी व्यवस्था विद्यमान हो गई जिसमे धार्मिक,आर्थिक और नैतिक विचारधारा थी। यूरोप में पूंजीवाद प्रोटेस्टेन्ट धर्म के कारण ही आया इसलिए वेबर ने कहा कि यूरोपीय समाज में परिवर्तन का एक महत्त्वपूर्ण कारण धर्म है।
मैक्स वेबर के अनुसार प्रोटेस्टेन्ट धर्म में कुछ ऐसी आचार संहिता विद्यमान थी जिसके कारण पूंजीवाद आया।
वो आचार संहिता निम्न है -
१- मेहनत का कोई विकल्प नहीं है। लक्ष्य तक पहुँचने के लिए सिर्फ मेहनत ही एक साधन है। रात दिन पागलों की तरह मेहनत करिये और साधुओं की तरह जीवन व्यतीत करिये।
२- सबकुछ पूर्व निर्धारित है। किस्मत को जानने का कोई तरीका नहीं है।
३- किस्मत को जानने का एक अप्रत्यक्ष तरीका है वह यह है कि ईश्वर अपना राज काज चलाने के लिए धरती से कुछ व्यक्तियों को चुनता है और वही चुना जाता है जिसकी किस्मत अच्छी होती है।
४- ईश्वर उसे ही चुनता है जिसे समाज में सम्मान प्राप्त होता है।
५- सम्मान उसे ही प्राप्त होता है जिसके पास पूँजी होती है।
यह आचार संहिता लोगों के अंदर पैसा कमाने का जूनून पैदा करती है। जिस दिन व्यक्ति को समाज में सम्मान प्राप्त हो जाता था उस दिन पूँजी कमाना बंद कर देता था। अतः परिवर्तन का एक महत्त्वपूर्ण कारण धर्म है।
वेबर अपने धर्म सम्बन्धी विचारों की पुष्टि के लिए दुनिया के छह महान धर्मों का अध्ययन करते हैं -
१-ईसाई धर्म -
इसके अंतर्गत कैथोलिक और प्रोटेस्टेन्ट धर्म का अध्ययन करते हैं और बताते हैं कि प्रोटेस्टेन्ट धर्म की आचार संहिता ऐसी है की लोगों के अंदर पूँजी कमाने का जूनून पैदा कर देती है जिसके कारण यहाँ पूंजीवाद की स्थापना हुई।२-हिन्दू धर्म -
इस धर्म में पैसा कमाने का जूनून नहीं था। इस धर्म का सारतत्व जाति व्यवस्था है। यहाँ ऐसी कोई विचारधारा या आचार संहिता नहीं पायी जाती। यहाँ मोक्ष प्राप्त करना ही मुख्य लक्ष्य है।३-बौद्ध धर्म -
इस धर्म में भी ऐसी कोई विचारधारा या आचार संहिता नहीं पायी जाती थी जो पूँजी कमाने का जूनून पैदा करे।४-इस्लाम धर्म -
इस धर्म में भी ऐसी कोई आचार संहिता नहीं पायी जाती थी जिससे पूँजी कमाने का जूनून पैदा हो।
५-यहूदी धर्म -
इस धर्म में पूँजी कमाने की प्रवृत्तियां तो हैं परन्तु यह एक प्रथा है।यहाँ लोग ब्याज के माध्यम से पूँजी कमाते हैं इसे Pariha Capitalism कहते हैं। परन्तु यहाँ इस प्रकार की कोई आचार संहिता नहीं पायी जाती थी जिससे पूँजी कमाने का जूनून पैदा हो।६-कन्फ्यूशियस धर्म -
यहाँ वह आचार संहिता पायी जाती थी जो पूंजीवाद को जन्म दे सकती थी जैसी की प्रोटेस्टेन्ट धर्म में पायी जाती थी किन्तु चीन में पूंजीवाद नहीं आया इसका कारण जानने के लिए वेबर ने चीन की सामाजिक संरचना का अध्ययन किया तो पाया की यहाँ पर तार्किकता नहीं आयी थी और न ही आर्थिक तत्त्व पाए जाते हैं जबकि यूरोप में तार्किकता आ चुकी थी।यहाँ मुद्रा और बैंकिंग जैसे आर्थिक तत्त्व पाए जाते थे जिसके कारण पूंजीवाद आया।निष्कर्षतः - वेबर के अनुसार-"आर्थिक व्यवस्था और धर्म दोनों ही सामाजिक परिवर्तन के सहायक कारक होते हैं।" जहाँ आर्थिक तत्त्व और आचार संहिता दोनों होती हैं वहां पूंजीवाद होता है। अर्थात -
Substance + Spirit = Capitalism
आर्थिक तत्त्व + विचारधारा = सामाजिक परिवर्तन
धर्म का समाजशास्त्र -
यह समाजशास्त्र की एक शाखा है जिसके अंतर्गत धर्म का अध्ययन किया जाता है। इस शाखा को समाज से परिचित कराने का श्रेय दुर्खीम को जाता है।
वेबर दुर्खीम के इस सिद्धांत से प्रभावित होकर दुनियाँ के ६ महान धर्मों का अध्ययन करते हैं और मानते हैं की धर्म समाज में परिवर्तन का महत्त्वपूर्ण कारक है क्योंकि प्रोटेस्टेन्ट धर्म के उदय के फलस्वरूप ही यूरोपीय समाज में पूँजीवाद आया क्योंकि प्रोटेस्टेन्ट धर्म में ऐसी आचार संहिता थी जिसने पूँजीवाद को जन्म दिया।
निष्कर्षतः धर्म समाज में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है चाहे संगठन लाने के सन्दर्भ में चाहे परिवर्तन लाने के सन्दर्भ में। यही वेबर का सामाजिक परिवर्तन का सिद्धांत है।
प्रोटेस्टेंट धर्म द्वारा पूंजीवाद का विकास
कार्ल मार्क्स ने पूंजीवाद समाज के विकास की बात करते हुए कहा की
पूंजीवाद का विकास उत्पादन के साधन के आधार पर होता है।इस आधार पर
उन्होंने ऐतिहासिक भौतिकवाद का सिद्धांत प्रतिपादित किया। इसके अंतर्गत
इन्होने समाज के विकास का चौथा चरण पूंजीवाद समाज को माना और कहा की
पूंजीवाद समाज में शोषण और वर्ग संघर्ष चरम सीमा पर पहुँच गया तथा
पूंजीवाद समाज नष्ट हो गया और समाजवाद की स्थापना हुई।
मार्क्स के पूंजीवाद से प्रभावित होकर वेबर भी पूंजीवाद की बात करते हैं।
वेबर
ने चार प्रकार के पूंजीवाद की बात की है -
1-Booty Capitalism - चोरी डकैती से धन कमाकर पूंजीपति बनना।
2-Pariha Capitalism- व्याज से पैसा कमाकर पूंजीपति बनना।
3-Traditional Capitalism - इसका उदय प्रोटेस्टेन्ट धर्म के कारण हुआ। इसका अंतिम लक्ष्य समाज में
सम्मान प्राप्त करना था। ईश्वर के पास जाने के लिए पूँजी कमाते थे। यहाँ
शोषण नहीं पाया जाता।
4-Modern Logical Capitalism - इनका विकास परम्परागत पूँजीवाद से हुआ। यहाँ भी प्रोटेस्टेन्ट धर्म की
आचार संहिता पायी जाती है।
निष्कर्षतः मार्क्स पूंजीवाद का मूल कारण आर्थिक
व्यवस्था को मानते हैं जबकि वेबर धर्म और आर्थिक व्यवस्था दोनों को
पूंजीवाद का कारण मानते हैं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubt please let me know