पारसन्स का सामाजिक संरचना का सिद्धान्त

सामाजिक संरचना का सिद्धान्त 



टालकॉट पारसन्स  सामाजिक संरचना का सिद्धांत भी सामाजिक व्यवस्था के सन्दर्भ में प्रतिपादित करते हैं तथा सामाजिक संरचना और सामाजिक व्यवस्था दोनों को अलग बताते हैं। पारसन्स के अनुसार प्रत्येक सामाजिक व्यवस्था की एक सामाजिक संरचना होती है। ये सामाजिक संरचना ही समाज में पाए जाने वाले विभिन्न व्यक्तियों की प्रस्थितियों एवं भूमिकाओं का निर्धारण अपनी अभिप्रेरणा और मानक मूल्यों के आधार पर निर्धारित करती है जिससे प्रत्येक व्यक्ति अपनी -अपनी भूमिकाओं का निर्वहन उचित रूप से करता है और वो सामाजिक संरचना संगठित बनी रहती है। 

सामाजिक संरचना के प्रकार -

पारसन्स के अनुसार चार प्रकार की सामाजिक संरचना होती है और प्रत्येक सामाजिक व्यवस्था में कोई न कोई सामाजिक संरचना अवश्य विद्यमान होती है। ये सामाजिक संरचनाएं निम्न हैं-

1 - सार्वभौमिक अर्जित प्रतिमान वाली सामाजिक संरचना 

2 -सार्वभौमिक प्रदत्त प्रतिमान वाली सामाजिक संरचना 

3 -विशिष्टीकृत अर्जित प्रतिमान वाली सामाजिक संरचना

4 -विशिष्टीकृत प्रदत्त प्रतिमान वाली सामाजिक संरचना

 सार्वभौमिक अर्जित प्रतिमान वाली सामाजिक संरचना -

यह एक ऐसे सामाजिक व्यवस्था की सामाजिक संरचना है जहाँ अर्जित मानक मूल्यों एवं गुणों को महत्त्व दिया जाता है और व्यक्ति की भूमिकाओं का निर्धारण उसकी योग्यता के आधार पर किया जाता है। इस प्रकार की संरचना या व्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति का समान अधिकार होता है। यहाँ व्यक्ति अपनी योग्यता अनुसार कोई पद धारण करके उसके क्रिया कलापों का उचित निर्वाहन करता है और सामाजिक संरचना या व्यवस्था को बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। 
जैसे - अमेरिकी और आधुनिक यूरोपीय समाज। 

सार्वभौमिक प्रदत्त प्रतिमान वाली सामाजिक संरचना -

एक ऐसे सामाजिक व्यवस्था की सामाजिक संरचना जहाँ भूमिकाएं सार्वभौमिक होती हैं किन्तु एक विशेष समूह के लोगों को ही निर्धारित की जाती हैं, किन्तु निर्धारण का आधार सार्वभौमिकता होती है। यह संरचना मानक मूल्यों को बनाये रखने के लिए प्रदत्त प्रस्थिति के आधार पर भूमिकाओं का निर्धारण करती है और सामाजिक व्यवस्था बनी रहती है।
जैसे- जाति के आधार पर आरक्षण दिया जाना 

विशिष्टीकृत अर्जित प्रतिमान वाली सामाजिक संरचना-

 एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था की सामाजिक संरचना जहाँ भूमिकाएं विशेष समूह के  लिए होती हैं किन्तु उनकी प्राप्ति में अर्जित योग्यता को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यहाँ  विशेष समूह का कोई भी व्यक्ति अपनी योग्यता अनुसार पद को धारण करके उससे सम्बंधित क्रिया कलापों का उचित निर्वाहन करता है और सामाजिक संरचना या व्यवस्था को बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। 
जैसे -धार्मिक शिक्षक के लिए प्रयुक्त शर्तें। 

विशिष्टीकृत प्रदत्त प्रतिमान वाली सामाजिक संरचना-

यह एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था की सामाजिक संरचना है जहाँ भूमिकाओं का निष्पादन और वितरण व्यक्ति की योग्यता के आधार पर न होकर उसके जन्म, लिंग, जाति इत्यादि के आधार पर होता है। यह सामाजिक संरचना परम्पराओं का समर्थन करती है उनको भंग करने के लिए किसी भी प्रकार का समर्थन नहीं देती है और मानक मूल्यों को बनाये रखने के लिए प्रदत्त प्रस्थिति के आधार पर भूमिकाओं का निर्धारण करती है। 
जैसे - अमेरिकी समाज में जो उच्च पद है उन पर स्पेनिश अमेरिकी वासियों को प्राथमिकता दी जाती है। 

निष्कर्ष -

निष्कर्षतः पार्सन्स का मानना है कि - "दुनियाँ की प्रत्येक सामाजिक व्यवस्था में सामाजिक संरचना के इन चार स्वरूपों में से कोई न कोई एक स्वरुप अवश्य विद्यमान रहता है।"



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