वेबर का शक्ति और सत्ता का सिद्धांत
वेबर का शक्ति और सत्ता का सिद्धांत
मैक्स वेबर ने 'शक्ति और सत्ता का सिद्धांत' अपने लेख
"शक्ति के शुन्य योग की अवधारणा"(Zero sum concept of power)
में दिया है।
शक्ति-
किसी भी व्यक्ति या समूह में निहित वो क्षमता जो किसी दूसरे व्यक्ति से
उसकी इच्छा के प्रतिकूल अपने उद्देश्य की पूर्ति करा लेती है तो उसे ही
शक्ति कहा जाता है। शक्ति सदैव अवैध होती है।
सत्ता -
शक्ति को जब
वैधता
प्राप्त हो जाती है तो वो सत्ता के रूप में परिवर्तित हो जाती है।अतः
शक्ति + वैधता =सत्ता
"वैध शक्ति ही सत्ता है।"
मैक्स वेबर
समाजशास्त्र में शक्ति और सत्ता के मध्य सम्बन्ध को दर्शाते हुए
"शक्ति के शुन्य योग की अवधारणा"(Zero sum concept of power) नामक एक लेख लिखते हैं।इस लेख के
अंतर्गत उन्होंने बताया की
"यदि किसी के पास सकारात्मक शक्ति है तो उससे प्रभावित होने
वाले व्यक्ति के पास उसके विरोध में नकारात्मक शक्ति होती है और दोनों का
योग शून्य हो जाता है।" अतः सकारात्मक शक्ति + नकारात्मक शक्ति =शून्य
इस लेख में वेबर ने कहा की शक्ति स्थिर नहीं होती है बल्कि चलायमान
होती है अर्थात एक अवस्था से दूसरी अवस्था में परिवर्तित हो जाती
है।क्योंकि शक्ति चलायमान है अर्थात सत्ता सम्बन्ध संस्थागत होते हैं इसमें
प्रत्येक व्यक्ति की भूमिकायें एवं अधिकार निश्चित होते हैं और उसी से समाज
में स्थायित्व आता है।
सत्ता के प्रकार -
मैक्स वेबर के अनुसार सत्ता तीन प्रकार की होती है -
१-तार्किक सत्ता -
जब किसी भी शक्ति को समाज की वैधानिक या संवैधानिक संस्थानों की
मान्यता प्राप्त हो जाती है तो वह तार्किक सत्ता के रूप में तब्दील हो
जाती है। तार्किक सत्ता का निर्माण समाज में पाए जाने वाले लक्ष्य पर
आधारित मानव व्यवहारों के द्वारा होता है। जब समाज के व्यक्ति लक्ष्य को
ध्यान में रखकर किसी भी व्यक्ति या समूह में निहित क्षमता या शक्ति को अपनी
संवैधानिक शक्ति द्वारा वैधता प्रदान कर देते हैं तो उस व्यक्ति या समूह
में निहित क्षमता या शक्ति तार्किक सत्ता के रूप में तब्दील हो जाती है।
इसे कानूनी सत्ता ,विधिक सत्ता इत्यादि नामों से भी जाना जाता है।
उदाहरण-
लोकतान्त्रिक सत्ता इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है क्योंकि लोकतंत्र में
समाज के लोग सामाजिक कल्याणकारी लक्ष्य को ध्यान में रखकर किसी भी व्यक्ति
या समूह या दल को अपने मताधिकार रुपी संवैधानिक शक्ति के माध्यम से वैधता
प्रदान कर देते हैं तो उसी व्यक्ति, समूह या दल में निहित सत्ता तार्किक या
लोकतान्त्रिक सत्ता के रूप में परिवर्तित हो जाती है।
नौकरशाही भी इसी सत्ता का उदाहरण है।
२-करिश्माई सत्ता -
मैक्स वेबर के अनुसार करिश्माई सत्ता का निर्माण भावनात्मक
मानव व्यवहार द्वारा होता है।करिश्माई सत्ता का उदय समाज में कुछ विशेष
परिस्थितियों में ही होता है और वो परिस्थितियां हैं समाज का घोर संकटकालीन
अवस्था में घिर जाना।
कोई भी व्यक्ति अपनी वाणी,भाषा ,क्रियाकलापों ,व्यक्तिगत क्षमता से समाज को
यह विश्वास दिला देता है कि मैं ही वह व्यक्ति हूँ जो समाज को घोर
संकटकालीन अवस्था से बाहर निकाल सकता हूँ जिससे समाज के अधिकांश लोग उससे
भावनात्मक लगाव रखने लगते हैं तथा उसके अंदर निहित शक्ति को भावनात्मक
वैधता प्रदान कर देते हैं। यह सत्ता व्यक्ति में निहित होती है इसलिए यह
व्यक्तिगत सत्ता है। यह अंशकालीन सत्ता होती है। यह चमत्कारिक ,जादुई
,रहस्यात्मक और व्यक्तिगत सत्ता है जो व्यक्ति विशेष में निहित
होती है समूह में नहीं।
बुद्ध,महावीर,गाँधी,ईशा मसीह इस सत्ता के उदाहरण हैं।
करिश्माई व्यक्ति के नियम कानूनों को यदि संवैधानिक संस्थाओं से
वैधता प्राप्त हो जाती है तो वह करिश्माई सत्ता तार्किक सत्ता में
परिवर्तित हो जाती है।
करिश्माई सत्ता का अंत तीन प्रकार से हो सकता है -
१-जब करिश्माई व्यक्ति की मृत्यु हो जाये।
२-करिश्माई सत्ता को संवैधानिक संस्थाओं से वैधता प्राप्त हो जाये।
३-करिश्माई सत्ता का दैनिकीकरण हो जाये।
३-परम्परागत सत्ता -
जब किसी भी व्यक्ति के अंदर निहित क्षमता या शक्ति को समाज की प्रथाएं और
परम्पराएं वैधता प्रदान कर देती हैं तो उस व्यक्ति में निहित क्षमता या
शक्ति परम्परागत सत्ता के रूप में तब्दील हो जाती है। जैसे - संयुक्त
परिवार में मुखिया की सत्ता,राजा के बेटे का राजा बनना आदि।
निष्कर्ष -
निष्कर्षतः सत्ता का निर्माण शक्ति द्वारा होता है।जब शक्ति को समाज की
वैधता प्राप्त हो जाती है तो वह सत्ता के रूप में तब्दील हो जाती है।
"प्रत्येक सत्ता में शक्ति होती है परन्तु प्रत्येक शक्ति सत्ता
नहीं है।"
very nice
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