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मर्टन का प्रकार्यवाद

मर्टन का प्रकार्यवाद मर्टन अपने   पहले के विद्वानों जैसे टालकॉट पारसन्स ,R.C. ब्राउन , मैलिनोवस्की के प्रकार्यवादी विचारों से बहुत प्रभावित थे। इन्होने  प्रकार्य शब्द का प्रयोग पाँच अर्थों में बताया है - 1-गणित में प्रकार्य शब्द का प्रयोग  2-उपयोगी क्रिया कलाप के सन्दर्भ में प्रकार्य शब्द का प्रयोग 3-उत्सव के सन्दर्भ में प्रकार्य शब्द का प्रयोग 4-मशीनों के सन्दर्भ में प्रकार्य शब्द का प्रयोग 5-सामाजिक व्यवस्था के सन्दर्भ में प्रकार्य शब्द का प्रयोग समाजशास्त्र में प्रकार्य शब्द का प्रयोग सामाजिक व्यवस्था के सन्दर्भ में किया जाता है। मर्टन के  प्रकार्यवाद को  संरचनात्मक प्रकार्यवाद कहा जाता है।  मर्टन प्रकार्य शब्द का प्रयोग पांचवे अर्थ के सन्दर्भ में अर्थात सामाजिक व्यवस्था तथा उसके इकाइयों के मध्य पाए जाने वाले सम्बन्ध के सन्दर्भ में प्रतिपादित करते हैं। किन्तु अपने प्रकार्यवादी विचारधारा का प्रतिपादन अपने से पहले के सभी प्रकार्यवादी विद्वानों के प्रकार्यवादी विचारधारा को आधार मानकर प्रस्तुत करते हैं।  ...

रॉबर्ट किंग मर्टन

R.K मर्टन  (4 जुलाई 1910 - 23 फरवरी 2003) रॉबर्ट किंग मर्टन (जन्म- मेयेर रॉबर्ट स्कोलनिक) एक अमेरिकी समाजशास्त्री थे,जिन्हें आधुनिक समाजशास्त्र का संस्थापक पिता माना जाता है, और अपराध विज्ञान के उपक्षेत्र में एक प्रमुख योगदानकर्ता है। उन्होंने अपने जीवन के अधिकांश समय तक कोलंबिया विश्वविद्यालय में पढ़ाया, जहाँ उन्होंने विश्वविद्यालय के प्रोफेसर का पद प्राप्त किया। 1994 में उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए और विज्ञान के समाजशास्त्र की स्थापना के लिए विज्ञान के राष्ट्रीय पदक से सम्मानित किया गया। मर्टन बहुत बड़े प्रकार्यवादी थे तथा इन्होने प्रकार्यवाद को नई दिशा दी।  मर्टन अमेरिकी समाजशास्त्र के दिग्गज समाजविज्ञानी सोरोकिन और पारसन्स के शिष्य रहे हैं तथा सुप्रसिद्ध पद्ध...

पारसन्स का सामाजिक परिवर्तन का सिद्धान्त

पारसन्स का सामाजिक परिवर्तन का सिद्धान्त  इस सिद्धांत को पार्सन्स ने संघर्षवादियों की आलोचना या प्रतिक्रिया के फलस्वरूप प्रतिपादित किया।  संघर्षवादी पार्सन्स की आलोचना करते हुए कहते हैं कि पारसन्स के सामाजिक व्यवस्था में सदैव संगठन एवं संतुलन विद्यमान रहता है इसलिए उनके सामाजिक व्यवस्था में कोई भी इकाई परिवर्तन को स्वीकार नहीं करेगी, क्योंकि परिवर्तन के लिए विरोधी तत्त्वों का होना अनिवार्य है अतः पारसन्स की सामाजिक व्यवस्था एक रूढ़िवादी व्यवस्था है जो यथास्थिति में विश्वास रखती है।  पारसन्स इसी आलोचना की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप सामाजिक परिवर्तन का सिद्धांत प्रतिपादित करते हैं और कहते हैं की किसी भी व्यवस्था में परिवर्तन के लिए विरोधी तत्त्वों का होना आवश्यक नहीं है बल्कि ...

पारसन्स का सामाजिक संरचना का सिद्धान्त

सामाजिक संरचना का सिद्धान्त  टालकॉट पारसन्स   सामाजिक संरचना का सिद्धांत भी सामाजिक व्यवस्था के सन्दर्भ में प्रतिपादित करते हैं तथा सामाजिक संरचना और सामाजिक व्यवस्था दोनों को अलग बताते हैं। पारसन्स के अनुसार प्रत्येक सामाजिक व्यवस्था की एक सामाजिक संरचना होती है। ये सामाजिक संरचना ही समाज में पाए जाने वाले विभिन्न व्यक्तियों की प्रस्थितियों एवं भूमिकाओं का निर्धारण अपनी अभिप्रेरणा और मानक मूल्यों के आधार पर निर्धारित करती है जिससे प्रत्येक व्यक्ति अपनी -अपनी भूमिकाओं का निर्वहन उचित रूप से करता है और वो सामाजिक संरचना संगठित बनी रहती है।  सामाजिक संरचना के प्रकार - पारसन्स के अनुसार चार प्रकार की सामाजिक संरचना होती है और प्रत्येक सामाजिक व्यवस्था में कोई न कोई सामाजिक संरचना अवश्य विद्यमान होती है। ये सामाजिक संरचनाएं निम्न हैं- ...

पारसन्स का प्रतिमान विकल्प का सिद्धान्त

प्रतिमान विकल्प ( Pattern Variables ) नियम कानूनों में विकल्पता ही प्रतिमान विकल्प है।   यह सिद्धांत पारसन्स ने सामाजिक व्यवस्था के सम्बन्ध में दिया।  सामाजिक व्यवस्था में सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई भूमिका होती है।  सामाजिक व्यवस्था में सबसे छोटी इकाई क्रिया होती है।  टालकॉट पारसन्स ने प्रतिमान विकल्प की अवधारणा सामाजिक व्यवस्था के सन्दर्भ में प्रतिपादित किया। इनके अनुसार सामाजिक व्यवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व भूमिका है। सामाजिक व्यवस्था का निर्माण इकाइयों से होता है जब इकाइयाँ अपनी भूमिका निभाएंगी तभी सामाजिक व्यवस्था बनी रहेगी। भूमिका के प्रकार -   पार्सन्स के अनुसार भूमिका दो प्रकार की...

पारसन्स का सामाजिक व्यवस्था का सिद्धांत

सामाजिक व्यवस्था का सिद्धांत या  संरचनात्मक प्रकार्यवादी सिद्धान्त  टालकॉट पार्सन्स के अनुसार समाजशास्त्र सामाजिक व्यवस्था का अध्ययन करता है इस सामाजिक व्यवस्था का निर्माण क्रिया प्रतिक्रिया या अंतः क्रिया के माध्यम से होती है  पार्सन्स कहते हैं कि "अंतः क्रिया का संस्थात्मक रूप ही व्यवस्था है।"  अंतः क्रिया- जब कोई भी दो व्यक्ति आपस में एक दूसरे से क्रिया - प्रतिक्रिया करते हैं और दोनों एक दूसरे को प्रभावित करते हैं तो उसे ही अंतः क्रिया कहा जाता है।    "पारसंस सामाजिक व्यवस्था की सबसे मूलभूत इकाई क्रिया को मानते हैं।"  पार्सन्स के अनुसार दो व्यक्ति क्रिया प्रतिक्रिया या अंतः क्रिया के माध्यम ...

पारसंस का सामाजिक क्रिया का सिद्धान्त

सामाजिक क्रिया का सिद्धांत   T. पारसंस वेबर से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। इन्होने वेबर से प्रभावित होकर " समाजशास्त्र को सामाजिक क्रिया का अध्ययन करने वाला विषय कहा।" पारसंस के सिद्धांत को समझने से पहले हम कुछ महत्त्वपूर्ण समाजशास्त्रीय शब्दों का अर्थ समझ लेते हैं - व्यवस्था - इकाइयों का क्रमबद्ध संकलन ही व्यवस्था है। इकाइयां चार प्रकार की होती हैं -  1 - सामाजिक इकाई  2 -आर्थिक इकाई  3 -राजनीतिक इकाई  4 -सांस्कृतिक इकाई  संरचना - विभिन्न इकाइयों के मध्य पाया जाने वाला स्थिर एवं प्रतिमानित(निश्चित नियम कानूनों को ही प्रतिमानित कहा जाता है) सम्बन्ध ही संरचना है।  प्रकार्य - जब विभिन्न इकाइयों के बीच सहयोगात्मक सम्बन्ध पाया जाता है तो उसे प्रकार्य (Function ) कहा जाता है।  ...