कार्ल मार्क्स
कार्ल मार्क्स
(5 May 1818 – 14 March 1883)
जन्म - जर्मनी में हुआ
प्रभाव-
मार्क्स के जीवन पर सर्वाधिक प्रभाव हीगल ,फ्यूरोबैक तथा एडम स्मिथ
एवं रेकार्डो का रहा है।
"मार्क्स धर्मनिरपेक्ष,मानवतावादी और नैतिक सिद्धांतो में आस्था
रखने वाले एक महान चिंतक थे। उन्हें किसी विषय सीमा के अंतर्गत
रखना उनके व्यक्तित्व के साथ नाइंसाफी होगी।"
उन्होंने धर्म को राजनीतिक धोखाधड़ी ,जालसाजी और
पूंजीपतियों द्वारा शोषण का हथियार माना है।
उन्होंने धर्म को अफीम की संज्ञा दी है जिसे समय -समय पर पूंजीपतियों द्वारा गरीबों को दिया जाता है ताकि वे
उनके खिलाफ आवाज न उठाये और क्रांति न करें। मार्क्स मानव स्वतंत्रता के
पुरजोर समर्थक थे। उनके सोच समझ का समस्त आधार मानवीय विवेक और तर्कशीलता
रही है।
ऐसा कहा जाता है की मार्क्स स्वयं
समाजशास्त्री नहीं थे किन्तु उनके विचारो में अवश्य समाजशास्त्र
निहित है। उन पर हीगल की द्वंद्वात्मक चिंतन प्रणाली का गहरा प्रभाव पङा और इन्होने इसे ग्रहण भी
किया।
हीगल के 'द्वंद्वात्मक आदर्शवाद 'के स्थान पर मार्क्स
ने अपना 'द्वंद्वात्मक भौतिकवाद 'खड़ा किया।
1842 में मार्क्स कोलोन से प्रकाशित 'राइनिशे जीतुंग'(एक उग्र बुर्जुआ अख़बार ) पत्र में पहले लेखक और तत्पश्चात् संपादक के रूप में शामिल हुए जिसमे उन्होंने तत्कालीन अमानवीय सामाजिक दशाओं पर लेख लिखे जिसने सरकारी क्षेत्रों में खलबली मचा दी क्योंकि इस पत्र में सरकारी नीतियों का खुल्लमखुल्ला विरोध किया गया था। तत्कालीन प्रशिया सरकार के दबाव के कारण उन्हें इस अख़बार को बंद करना पड़ा तथा अपनी राजनीतिक सक्रियता के कारण अपने देश जर्मनी को छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा। 1843 में वे जर्मनी छोड़कर पेरिस आ गए। यहीं पर उनकी मुलाकात जर्मनी के एक व्यापारी एवं उद्योगपति के पुत्र फ्रैडरिक एंजिल्स से हुई जो आजीवन उनके घनिष्ट मित्र रहे। एंजिल्स ने मानसिक सहयोग के साथ-साथ मार्क्स एवं उनके परिवार की काफी आर्थिक मदद भी की। 1845 में मार्क्स को पेरिस से भी निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद वे ब्रुसेल्स आ गए यहाँ वे साम्यवादी लीग के सदस्य बनकर पुनः जर्मनी लौट आये किन्तु आंदोलनकारी कार्यकलापों के कारण उन्हें पुनः देश निकला दे दिया गया, तत्पश्चात वे लन्दन चले गए जहां वे जीवन के अंत तक रहे। मार्क्स का अधिकांश जीवन घोर गरीबी में बीता।
1842 में मार्क्स कोलोन से प्रकाशित 'राइनिशे जीतुंग'(एक उग्र बुर्जुआ अख़बार ) पत्र में पहले लेखक और तत्पश्चात् संपादक के रूप में शामिल हुए जिसमे उन्होंने तत्कालीन अमानवीय सामाजिक दशाओं पर लेख लिखे जिसने सरकारी क्षेत्रों में खलबली मचा दी क्योंकि इस पत्र में सरकारी नीतियों का खुल्लमखुल्ला विरोध किया गया था। तत्कालीन प्रशिया सरकार के दबाव के कारण उन्हें इस अख़बार को बंद करना पड़ा तथा अपनी राजनीतिक सक्रियता के कारण अपने देश जर्मनी को छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा। 1843 में वे जर्मनी छोड़कर पेरिस आ गए। यहीं पर उनकी मुलाकात जर्मनी के एक व्यापारी एवं उद्योगपति के पुत्र फ्रैडरिक एंजिल्स से हुई जो आजीवन उनके घनिष्ट मित्र रहे। एंजिल्स ने मानसिक सहयोग के साथ-साथ मार्क्स एवं उनके परिवार की काफी आर्थिक मदद भी की। 1845 में मार्क्स को पेरिस से भी निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद वे ब्रुसेल्स आ गए यहाँ वे साम्यवादी लीग के सदस्य बनकर पुनः जर्मनी लौट आये किन्तु आंदोलनकारी कार्यकलापों के कारण उन्हें पुनः देश निकला दे दिया गया, तत्पश्चात वे लन्दन चले गए जहां वे जीवन के अंत तक रहे। मार्क्स का अधिकांश जीवन घोर गरीबी में बीता।
मार्क्स की वैचारिक सोच का समस्त खाका उत्पादन विधि ,उत्पादन शक्तियां,उत्पादन
सम्बन्ध ,अधिसंरचना, अधो-संरचना ,वर्ग और वर्ग संघर्ष ,अलगाव ,वर्ग चेतना
,अतिरिक्त मूल्य जैसी अनेक अवधारणाओं के ताने-बाने से बुना हुआ
है।मार्क्स के सभी विचारो का केंद्र बिंदु औद्योगिक व्यवस्था
से उत्पन्न निम्न कामगार वर्ग की अमानवीय दशाओं की पीड़ा
तथा आर्थिक निर्धारणवाद रहा है।
मार्क्स की प्रमुख कृतियाँ -
१-The German Ideology (with Engels )=1845
२-The Poverty of Philosophy = 1847
३-Communist Manifesto (with Engels )=1848
४-The Class Struggle in France =1850
५-The Eighteenth Brumaire of Louis Bonaparte= (1852 )
६-Das Capital (तीन भागों में प्रकाशित हुई )1 -1867, 2 -1885
,3 -1894
७-Economic and Philosophical Manuscripts of 1844
मार्क्स की प्रमुख अवधारणाएं -
#- नागरिक समाज की अवधारणा
#- असत्य व गलत चेतना
#-आर्थिक निर्धारणवाद
#- सामाजिक परिवर्तन एवं क्रांति की अवधारणा
#- परिवर्तन का प्रविधि सिद्धांत
#- संक्रमणशील वर्ग
#- बुर्जुआ वर्ग
#- इतिहास की भौतिक एवं द्वंद्वात्मक व्यवस्था के सिद्धांत
#- पूंजीवाद की अवधारणा
#- चक्रीय कार्योत्पादन एवं संचयी बदलाव
#- अधिसंरचना एवं अधोसंरचना
#- पुनः उत्पादन की अवधारणा
#- अतिरेक जनसँख्या का सिद्धांत
मार्क्स के सिद्धांत
१- सामाजिक परिवर्तन का सिद्धांत - इसके अंतर्गत मार्क्स ने तीन सिद्धांत
दिए =
(क)-द्वंद्वात्मक भौतिकवाद
(ख)-
ऐतिहासिक भौतिकवाद
(ग )-
वर्ग संघर्ष
२-स्तरीकरण का सिद्धांत -इसके अंतर्गत मार्क्स ने - "स्वयं में वर्ग और स्वयं के लिए वर्ग " की बात की
द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत -
कार्ल मार्क्स ने हीगल के द्वंद्ववाद
और फ्यूरोबैक के भौतिकवाद को मिलाकर सामाजिक परिवर्तन के
सन्दर्भ में एक सिद्धांत दिया जिसे"
द्वंद्वात्मक भौतिकवाद
"का सिद्धांत कहते हैं। यह सिद्धांत मार्क्स ने अपनी पुस्तक
"Contribution to the Critic of Political Economy "में दिया
हीगल- ने दर्शनशास्त्र में अपने द्वंद्वात्मक आदर्शवाद
की व्याख्या करते हुए कहा की- संपूर्ण जगत एक निरपेक्ष विचार की उपज
या प्रतिछाया है ,जब विचारों में परिवर्तन आता है तो संपूर्ण समाज
में परिवर्तन आता है और विचारों में परिवर्तन द्वंद्ववाद के माध्यम
से आता है। हीगल के अनुसार प्रत्येक वाद में उसका प्रतिवाद छिपा होता है।
कुछ दिनों में वही निकलकर ऊपर आ जाता है और दोनों में तर्क वितर्क होता है
तो एक नया विचार निकलकर आता है जिसे संवाद कहते हैं।
फ्यूरोबैक- द्वंद्वात्मक आदर्शवाद का खंडन करते हुए कहते हैं
की विचारों की उत्पत्ति मस्तिष्क में होती है और मस्तिष्क शरीर का अंग है
,शरीर भौतिक पदार्थों का संकलन है इसलिए मस्तिष्क भी पदार्थ
है। इसलिए भौतिक पदार्थ अनिवार्य होते हैं न की विचार। अतः फ्यूरोबैक के
अनुसार भौतिक पदार्थ ही संसार का आधार है। यही फ्यूरोबैक का भौतिकवाद
है।
मार्क्स
सर्वप्रथम हीगल का खंडन करते हुए कहते हैं की -हीगल के अनुसार
संपूर्ण जगत मनुष्य के विचारों की उत्पत्ति है अर्थात ये मनुष्यों को
मस्तिष्क (विचारों )के बल खड़ा कर देते हैं।
मार्क्स के अनुसार -
विचारों की उपज के लिए मानव का शारीरिक अस्तित्व आवश्यक है तथा शारीरिक
अस्तित्व के लिए रोटी, कपड़ा,मकान जैसी भौतिक वस्तुएं आवश्यक हैं।
मार्क्स
कहते हैं ठीक इसी प्रकार समाज की दो मूलभूत संरचना
होती है-
१-अधोसंरचना (Sub Structure )- यह नींव का कार्य करती है। इसके अंतर्गत आर्थिक संरचना एवं भौतिक
संरचना होती है।
२-अधिसंरचना (Super Structure) - यह अधोसंरचना पर आश्रित होती है। इसके अंतर्गत
राजनैतिक,मनोरंजनात्मक ,कानूनी,सांस्कृतिक ,धार्मिक
आदि संरचनाएं आती हैं।
"आर्थिक संरचना ही सभी संरचनाओं को निर्धारित करती है यही मार्क्स का
भौतिकवाद है।"
मार्क्स का मानना है की जब आर्थिक संरचना में परिवर्तन आएगा तो
संपूर्ण ऊपरी संरचना में परिवर्तन आ जायेगा और संपूर्ण समाज
परिवर्तित हो जायेगा इसलिए समाज में परिवर्तन का मुख्य आधार आर्थिक
अवस्था है। आर्थिक अवस्था में परिवर्तन द्वंद्ववाद के माध्यम से आता
है क्योंकि आर्थिक अवस्था में अंतर्विरोध छिपा होता है।
द्वंद्ववाद के नियम -
मार्क्स के अनुसार द्वंद्ववाद के तीन नियमो के माध्यम
से आर्थिक अवस्था में परिवर्तन आता है -
१- विरोधियों में परस्पर एकता और संघर्ष का नियम -
मार्क्स के अनुसार प्रत्येक
आर्थिक व्यवस्था में दो वर्ग होते हैं १-मालिक वर्ग २- कामगार वर्ग।
पहले तो दोनों एक दूसरे का सहयोग करते हैं किन्तु जब दोनों के विरोधी हित
आपस में टकराते हैं तो संघर्ष विद्यमान हो जाता है और यही संघर्ष परिवर्तन
का मुख्य आधार है, इसलिए द्वंद्ववाद का पहला नियम दुनियां के प्रत्येक समाज
की आर्थिक अवस्था पर कार्य करता है।
२- मात्रात्मक परिवर्तन से गुणात्मक परिवर्तन का नियम -
दुनिया के प्रत्येक आर्थिक संरचना में पहले मात्रात्मक परिवर्तन होता है
परन्तु जब यह अपने चरम सीमा पर पहुँच जाता है तो गुणों में भी
परिवर्तन आ जाता है और संपूर्ण आर्थिक व्यवस्था बदल जाती है।
३-निषेध के निषेध का नियम -
प्रत्येक समाज की आर्थिक व्यवस्था में कुछ ऐसे तत्त्व छिपे होते हैं जो
अंततः उसके विनाश का कारण बनते हैं और उसे नई वस्तु के रूप में तब्दील कर
देते हैं। निषेध का तात्पर्य है किसी पुरानी वस्तु का अंदर छिपी
विशेषताओं के कारण नई वस्तु के रूप में तब्दील हो जाना जैसे -गेहूँ
के बीज का पौधे के रूप में परिवर्तित हो जाना। ठीक इसी प्रकार पूंजीवादी
समाज में भी उसके विनाश के तत्त्व निहित हैं। जैसे- यातायात और संचार के
साधन।
अतः जब द्वंद्ववाद अपने तीन नियमों के माध्यम से
किसी भी समाज की आर्थिक अवस्था पर कार्य करता है तो संपूर्ण आर्थिक अवस्था
परिवर्तित हो जाती है क्योंकि आर्थिक अवस्था संपूर्ण समाज के लिए
नींव का कार्य करती है तो जब नींव में परिवर्तन होता है तो संपूर्ण ऊपरी
संरचना में परिवर्तन हो जाता है अर्थात संपूर्ण समाज परिवर्तित हो जाता
है। यही मार्क्स का द्वंद्वात्मक भौतिकवाद है।
मार्क्स की कुछ अन्य रचनाएँ -
* A Critical Political Economy
* The Gotha Program
* The Holly Family
* Price and profit
"हीगल सिर के बल खड़ा हुआ था मैंने उसे पैरों के बल खड़ा कर दिया" -कार्ल मार्क्स
"प्रत्येक आर्थिक व्यवस्था में उसके विनाश के तत्त्व छिपे होते हैं "
- कार्ल मार्क्स
What is the structure of stratification according to Karl Marx?
जवाब देंहटाएंhttps://totalsociology.blogspot.com/2020/04/Theory-of-stratification.html
जवाब देंहटाएंV nice content
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