संदेश

अप्रैल, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मार्क्स का-अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत

मार्क्स का अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत -(Theory of Surplus Value) विक्रय मूल्य - लागत = अतिरिक्त मूल्य (लाभ) किसी वस्तु के उत्पादन की अवधि में  किये गए श्रम के वास्तविक मूल्य से कम मूल्य श्रमिकों को देकर पूंजीपति बचाये हुए मूल्य को हड़प जाते हैं। यही बचाया हुआ मूल्य अतिरिक्त मूल्य(surplus value )कहलाता है।   पूंजीपति इस अतिरिक्त मूल्य को अपने पास बचाकर इसे पुनः निवेश कर देते हैं। यह प्रक्रिया ही पूंजीवादी व्यवस्था के परिचालन का मुख्य आधार है।  स्वयं में वर्ग और स्वयं के लिए वर्ग-  मार्क्स के अनुसार समाज में आर्थिक व्यवस्था के आधार पर दो वर्ग होते हैं - १-वस्तुनिष्ठ वर्ग (Objective Class )- इस वर्ग को ही स्वयं में वर्ग (Class in Itself )कहा जाता है इसके अंतर्गत पूंजीपति वर्ग आता है।यह वर्ग लोगों का एक ऐसा स...

अलगाव का सिद्धांत

अलगाव का सिद्धांत -(Theory of Alienation) अलगाव का अर्थ -     सामाजिक सम्बन्धों में घनिष्ठता का अभाव या पायी जाने वाली दूरी ही अलगाव कहलाती  है।    मार्क्स से पहले हीगल ने दर्शनशास्त्र में अलगाव के सिद्धांत का प्रयोग दार्शनिक परिप्रेक्ष्य में दिया था। हीगल के अनुसार मानव ईश्वर की प्रतिच्छाया है इसलिए सभी मानव समान हैं किन्तु जब यह मानव अपने अंदर गलत सोच जैसे- ऊँच -नींच ,हीनता -श्रेष्ठता आदि भावनाएं विकसित कर लेता है तो एक मानव का दूसरे मानव से अलगाव हो जाता है। हीगल के दार्शनिक मित्र फ्यूरोबैक ने हीगल का समर्थन किया और कहा की गलत सोच की वजह से ही अलगाव होता है।  17 वीं शताब्दी में थॉमस हॉब्स   के अनुसार- मानव स्वभाव से स्वार्थी,लालची और बेईमान होता है यही प्रवृत्तियां एक मानव से दूसरे ...

मार्क्स का स्तरीकरण का सिद्धांत

मार्क्स का स्तरीकरण का सिद्धांत  समाज में कई वर्ग पाए  जाते हैं और सभी वर्गों या समूहों में  कुछ असमानता पायी जाती है इसी सामूहिक असमानता या वर्गों की विषमता को स्तरीकरण कहा जाता है।  मार्क्स के अनुसार इतिहास के सभी समाजों में वर्ग संघर्ष पाया जाता है इसका अर्थ है की सभी समाजों में एक से अधिक वर्ग या समूह पाए जाते हैं अर्थात इतिहास के लगभग सभी समाजों में स्तरीकरण विद्यमान था। किन्तु वर्ग का निर्माण आर्थिक व्यवस्था या उत्पादन के साधन के आधार पर होता है।  जो इस आर्थिक व्यवस्था या उत्पादन के साधन के मालिक होते हैं उन्हें शासक वर्ग कहा जाता है, जो इस व्यवस्था के मालिक नहीं होते हैं उन्हें शासित वर्ग कहा जाता है।  दोनों वर्गों के परस्पर विरोधी हित   आपस में टकराते हैं जिससे दोनों में सदैव  संघर्ष चलता रहता है। इसलिए इसे "स्तरीकरण का द्वंद्ववादी सिद्धांत" या "स्तरीकरण का संघर्षवादी सिद्धांत" क...

वर्ग संघर्ष का सिद्धांत

वर्ग संघर्ष का सिद्धांत-       (मार्क्स &एंजिल्स )                  यह सिद्धांत मार्क्स और एंजिल्स ने अपनी The Communist Menifesto नामक पुस्तक में 1848 में दिया। इस सिद्धांत को इन्होने पूंजीवादी समाज के विनाश के सन्दर्भ में दिया है तथा वर्ग संघर्ष को इन्होने पूंजीवादी समाज में परिवर्तन का मुख्य कारण माना है।         मार्क्स के अनुसार इतिहास के लगभग सभी समाजों में वर्ग संघर्ष विद्यमान है। इन्होने वर्ग संघर्ष का एक मात्र आधार आर्थिक व्यवस्था को बताया है।  इन्होने आर्थिक व्यवस्था के आधार पर समाज को दो वर्गों में बांटा है-      शासक वर्ग एवं शासित वर्ग।  दोनों वर्गों के परस्पर विरोधी हित होते हैं जिससे उनमे टकराहट उत्पन्न होती है इसलिए दोनों विरोधी वर्ग के अंतर्गत आते हैं तथा दोनों में ...

मार्क्स का ऐतिहासिक भौतिकवाद

मार्क्स का ऐतिहासिक भौतिकवाद  (Historical Materialism )                                         मार्क्स ने यह सिद्धांत पूंजीवादी  समाज के उदविकास के सम्बन्ध में प्रतिपादित किया जो कि सामाजिक परिवर्तन के सिद्धांत के अंतर्गत आता है  इतिहास +भौतिकवाद =बीते हुए समाजों की भौतिकवाद के आधार पर व्याख्या करना ही ' ऐतिहासिक भौतिकवाद' है।  मार्क्स पहले भौतिकवाद की व्याख्या करते हैं। इनके अनुसार प्रत्येक समाज की दो संरचनाये होती हैं -               १-अधोसंरचना       २-अधिसंरचना                        आर्थिक व्यवस्था के अंतर्गत उत्पादन की प्रणाली आती है तथा उत्पादन की...

कार्ल मार्क्स

कार्ल मार्क्स    (5 May 1818 – 14 March 1883) जन्म - जर्मनी  में  हुआ  प्रभाव- मार्क्स के जीवन पर सर्वाधिक प्रभाव हीगल ,फ्यूरोबैक तथा एडम स्मिथ एवं रेकार्डो का रहा है।        " मार्क्स धर्मनिरपेक्ष,मानवतावादी और नैतिक सिद्धांतो में आस्था रखने वाले एक महान चिंतक थे। उन्हें किसी विषय सीमा के अंतर्गत रखना उनके व्यक्तित्व के साथ नाइंसाफी होगी।"      उन्होंने धर्म को राजनीतिक धोखाधड़ी ,जालसाजी और पूंजीपतियों द्वारा शोषण का  हथियार माना है। उन्होंने धर्म को अफीम की  संज्ञा दी है  जिसे समय -समय पर पूंजीपतियों द्वारा गरीबों को दिया जाता है ताकि वे उनके खिलाफ आवाज न उठाये और क्रांति न करें। मार्क्स मानव स्वतंत्रता के पुरजोर समर्थक थे। उनके सोच समझ का समस्त आधार ...

दुर्खीम - धर्म का प्रकार्यवादी सिद्धांत

धर्म का प्रकार्यवादी सिद्धांत दुर्खीम ने अपनी पुस्तक "धार्मिक जीवन के  प्रारंभिक स्वरुप " में धर्म का प्रकार्यवादी सिद्धांत प्रस्तुत किया।  दुर्खीम अपना सिद्धांत देने से पहले अपने पूर्ववर्ती धर्म सम्बन्धी विचारकों के विचारो का खंडन करते हैं। टायलर के आत्मवादी सिद्धांत  - का  खंडन करते हुए दुर्खीम कहते  हैं की इस सिद्धांत में आदिम मानव को आवश्यकता से अधिक बुद्धिमान मान लिया लिया गया है तथा धर्म को बहुत सरल तरीके से  परिभाषित किया गया है जबकि धर्म एक जटिल संस्था है। मैक्समूलर के प्रकृतिवाद   का खंडन करते हुए कहते हैं की धर्म एक सामाजिक तथ्य है और इस सिद्धांत  में समाज का कोई वर्णन नहीं किया गया है। मानावाद का खंडन किया। धर्म के सम्बन्ध में  दुर्खीम के विचार - ...

दुर्खीम का आत्महत्या सिद्धांत

दुर्खीम का आत्महत्या का सिद्धांत- दुर्खीम का मानना है की आत्महत्या एक ऐसा मानव व्यवहार है जो व्यक्ति समाज के सन्दर्भ में करता है इसलिए आत्महत्या एक  सामाजिक तथ्य है।इसका निर्माण समाज करता है। इनके अनुसार एकीकरण और आत्महत्या दोनों एक दूसरे के विलोमानुपाती होते हैं अर्थात जहाँ एकीकरण अधिक होगा वहां आत्महत्या कम होगी जहाँ एकीकरण कम होगा वहां आत्महत्या अधिक होगी। "आत्महत्या जो ऊपरी तौर पर एक व्यक्तिगत तथ्य और मानसिक कारकों  का परिणाम नजर आती है उसका निर्धारण अंततः समाज द्वारा होता है " -  Emile Durkhiem  The Rules of Sociological method   पुस्तक में दुर्खीम ने समाजशास्त्र के अध्ययन के जिन नियमो,विधियों एवं  उपागमों का प्रतिपादन किया था उन्हें अपनी रचना "The Suicide"   में प्रयोग करके दिखाया।...

दुर्खीम का सामाजिक तथ्य का सिद्धांत

  सामाजिक तथ्य का सिद्धांत सामाजिक तथ्य का तात्पर्य ऐसे मानव व्यवहार से है जिन्हे व्यक्ति समाज के सन्दर्भ में प्रतिपादित करता है। अर्थात सामाजिक तथ्य व्यवहार तथा कार्य करने का एक तरीका है,सोचने समझने का तरीका है जिसे व्यक्ति समाज के सन्दर्भ में करता है। मानव व्यवहार दो तरीके के होते हैं - १-सामाजिक मानव व्यवहार  २-जैविकीय मानव व्यवहार  सामाजिक मानव व्यवहार मनुष्य चेतन अवस्था में समाज के सन्दर्भ में करता है। जैविकीय  मानव  व्यवहार अचेतन अवस्था में स्वयं के सन्दर्भ में करता है। परिवार,विवाह,धर्म,प्रथा परंपरा ,भाषा ,आर्थिक व्यवस्था ,राजनैतिक व्यवस्था ,आत्महत्या ,अपराध  आदि सामाजिक व्यवहार के अंतर्गत आते है। दुर्खीम का मानना था प्रत्यक्षवाद के माध्यम से ज्ञानेन्द्...

एमाइल दुर्खीम

एमाइल दुर्खीम- (1858 -1917 ) जन्म -फ्रांस में हुआ था  एमाइल दुर्खीम  एक फ्रांसीसी समाजशास्त्री थे। उन्होंने औपचारिक रूप से समाजशास्त्र के अकादमिक अनुशासन की स्थापना की - और कार्ल मार्क्स और मैक्स वेबर के साथ-आमतौर पर आधुनिक सामाजिक विज्ञान के प्रमुख वास्तुकार के रूप में उद्धृत हुए। एमाइल दुर्खीम  को आधुनिक समाजशास्त्र का पिता कहा जाता है। इन्हे  आगस्त काम्टे  का उत्तराधिकारी भी कहा जाता है क्योंकि इनके ऊपर कोम्टे के प्रत्यक्षवाद का काफी प्रभाव था, इन्होने समाजशास्त्र की विषय वस्तु को स्पष्ट करने के साथ ही इसे एक स्वतंत्र एवं स्वायत्त विज्ञान के रूप में विकसित किया।  दुर्खीम को पहला अकादमिक समाजशास्त्री माना जाता है। एमाइल दुर्खीम  के अधिकांश कार्यों का संबंध यह था कि कैसे समाज आधुनिकता में अपनी अखंडता और सुसंगतता को बनाए रख सकता है, एक ऐसा युग जि...